एक नेता जी,
चुनाव में हो गये खड़े,
पहले करो कुछ वायदे,
लोग इस बात पर थे अड़े।
नेता जी ने गहराई से,
बहुत सोचा और विचारा,
उनके पास,
चुनाव जीतने के लिए,
नही था कोई चारा।
इसलिए,
जनता से करने चल पड़े,
कुछ वायदे,
क्योंकि,
सिर्फ कुर्सी ही पहुँचा सकती है,
उन्हें फायदे।
उन्होंने जनता से कहा
कि मैं हूँ हरिश्चन्द्र सत्यवादी,
तन-मन मैला है,
इसीलिए पहनता हूँ,शुद्ध खादी।
भाइयों,मैं वचन भरता हूँ,
चुनाव जीतने पर,
मेल ट्रेन को,
इस स्टेशन पर,
रुकवाने का वायदा करता हूँ।
नेता चुनाव में विजयी हो गया,
और उसका,
जनता से किया वायदा
भी पूरा हो गया।
अब मेल ट्रेन,
इस छोटे स्टेशन पर रुकने लगी है,
एक बड़ी उपलब्धि हो गयी है,
किराया ऐक्सप्रैस का और,
मेल ट्रेन पैसेन्जर हो गयी है।
अब जनता करती है,
किराया कम करने की फरियाद,
नेता जी, दिलाते हैं याद।
हमने अपने शासन में,
बहुत विकास किया है,
परन्तु,
विकास की गति को मन्द कर दिया है।
आजकल यही तो राजनीति है,
जनता की,
यही तो नियति है।
janta bechari aur kya kar sakti hai
जवाब देंहटाएंvayadon aur aashvason ke bharose
jiti hai aur dhokha khati hai.
apni apni niyati hai neta aur janata ki
ek ki kismat dhokha dena aur dooje ki
dhokha pana
आदरणीय शास्त्री जी!
जवाब देंहटाएंआपने आजकल के
चुनावी मौसम के
अनुकूल अच्छा व्यंग्य कसा है।
आप बधाई के पात्र हैं।
मयंक जी।
जवाब देंहटाएंआजकल
व्यग्य ही व्यंग्य लिख रहे हैं।
अच्छा है।
बधाई।
sir,
जवाब देंहटाएंAapne is mahaul men sunder rachnaa blog par lagaayee hai.
CONGRATULATION.
शास्त्री जी!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन व्यंग है।
आज नेता ही विकास में बाधक हैं।
ये सिर्फ अपना ही विकास करते हैं।
मयंक जी!
जवाब देंहटाएंचुनाव के मौसम में,
आपका व्यंग सटीक है।
बधाई।
सटीक और सामयिक व्यंग.
जवाब देंहटाएंरामराम.