इस छोटी सी कथा के माध्यम से दो परिवेशों का अन्तर स्पष्ट करने की कोशिश कर रहा हूँ।
किसी बस्ती में एक भँवरा रहता था। उसने अपना घर गोबर की माँद में बनाया हुआ था। वह इसमें बड़ा खुश था।
एक दिन जंगल में रहने वाला भँवरा रास्ता भटक गया और इसकी बस्ती में आ गया।
बस्ती वाले भँवरे ने अपने बिरादर को देखा तो उसे बड़ा अच्छा लगा। खुशी-खुशी वह उसे अपने घर में ले गया।
जब जंगल के भँवरे ने बस्ती वाले भँवरे का घर देखा तो उसे यह घर बिल्कुल भी अच्छा नही लगा।
वह बोला- ‘‘भैया! तुम इस अंधेरे बदबूदार घर में कैसे रहते हो? मेरा तो यहाँ दम घुट रहा है।’’
बस्ती वाला भँवरा बोला- ‘‘मित्र! तुम तो जंगली हो। तुम गाँव-बस्ती की संस्कृति को नही समझ पाओगे।’’
खैर, जैसे-तैसे इस जंगली भँवरे ने एक रात काट ली।
सुबह होने पर वह बस्ती वाले भँवरे से बोला- ‘‘मित्र कभी मेरे घर भी आना। मेरा घर दूर जंगल में है।’’
कुछ दिन बीत जाने पर बस्ती वाले भँवरे ने सोचा कि जंगल की आबो-हवा भी देख आता हूँ। अतः वह जंगल के भवरे के घर जा पँहुचा।
जंगल वाला भँवरा अपने इस मित्र को देख कर बड़ा प्रसन्न हुआ।
वह गाँव से आये इस भँवरे को कभी एक फूल के पास ले जाता। कभी दूसरे फूल के पास ले जाता और बार-बार कहता कि मित्र देखो कितनी अच्छी खुशबू आ रही है। लेकिन बस्ती वाला भँवरा कोई जवाब नही दे रहा था।
अब तो जंगल में रहने वाले भँवरे को चिन्ता हुई कि आखिर यह मेरी बात का जवाब क्यों नही दे रहा है?
उसने कहा - ‘‘मित्र! क्या तुम्हें किसी भी फूल में से सुगन्ध नही आयी।’’
बस्ती वाला भँवरा बोला- ‘‘नही मित्र! मुझे किसी भी फूल में खुशबू नही आयी।’’
इसकी बात सुन कर जंगल में रहने वाला बड़ा हैरान हुआ।
वह इसे एक झरने के किनारे ले गया और बोला- ‘‘मित्र! अब मुँह धोला और कुल्ला कर लो।"
जब बस्ती वाले भँवरे ने ने कुल्ला किया तो उसके मुँह से गोबर का एक टुकड़ा निकला।
जंगली भँवरे की समझ में अब सारी बात आ गयी।
वह पुनः जब अपने मित्र को फूल के पास ले गया तो-
बस्ती वाले भँवरे के मुँह से शब्द निकल ही पड़े- ‘‘मित्र! तुम वाकई स्वर्ग में रहते हो।"
कहने का तात्पर्य यह है कि जब तक हम अपने दिमाग को स्वच्छ नही रक्खेगे, तब तक हम अच्छाई का आनन्द नही उठा सकेंगे।
बस दो परिवेशों में यही तो अन्तर होता है।
दो परिवेशों के अंतर का सटीक चित्रण
जवाब देंहटाएंबहुत गहरी बात छोटी से कहानी के माध्यम से कह दी.
आभार
चन्द्र मोहन गुप्त
इस कथा के माध्यम से आपने बहुत उपयोगी शिक्षा दे दी. आपको बहुत धन्य्वाद.
जवाब देंहटाएंरामराम.
भूल सुधार :
जवाब देंहटाएंधन्य्वाद = धन्यवाद.
हाँ शास्त्री जी, सही लिखा है.
जवाब देंहटाएंमेरी आपसे एक विनती है कि आप अपनी पोस्ट के शीर्षक पर अपना नाम ना लिखें. इससे शीर्षक कुछ लम्बा हो जाता है. बस, पढने में थोडी दिक्कत होती है. चूंकि यह ब्लॉग ही आपका है इसलिए मेरे ख्याल से अलग से शीर्षक में अपना नाम लिखने की जरुरत भी नहीं है. बाकी आपकी मर्जी.
बहुत ही प्रेरक कथा आपने सुनाई। आभार।
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TSALIIM.
-SBA-
बहुत अच्छा शिक्षाप्रद लेखन है
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तख़लीक़-ए-नज़र । चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें । तकनीक दृष्टा
waah .......bahut hi achchi aur shikshaprad kahani.beshak kahani hai magar sochne ka dhang sikhti hai, zindagi jeene ka dhang sikhati hai.
जवाब देंहटाएंShastri ji!
जवाब देंहटाएंshikshaprad kahani ke liye badhayee.
शाबाश!
जवाब देंहटाएंप्रेरक कथा के लिए आभार .....
जवाब देंहटाएंबहुत ही शिक्षाप्रद कहानी.हर व्यक्ति को इससे शिक्षा लेनी ही चाहिये.
जवाब देंहटाएंप्रेरणादायक शिक्षाप्रद कहानी.. सुन्दर
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