काँटों की फुलवारी में, दिल को कैसे बहलाओगे?
रूखी-सूखी क्यारी में, सुख-सुमन कहाँ पाओगे?
मेरी यादों से ही, अपने मन को बहला लेना,
स्वप्न सरोवर में ही, अपने तन को नहला लेना,
मुझको पाने को प्रियतम, तुम कहाँ-कहाँ जाओगे?
रूखी-सूखी क्यारी में, सुख-सुमन कहाँ पाओगे?
बँधा हुआ है युगों-युगों से, प्रेम-प्रीत का बन्धन,
मैं हूँ अक्स तुम्हारा, तुम हो मेरे माथे का चन्दन,
मधुरिम छवि पाने को, दर्पण कहाँ-कहाँ लाओगे?
रूखी-सूखी क्यारी में, सुख-सुमन कहाँ पाओगे?
साथ हमारा और तुम्हारा, केवल इतना ही था,
सागर का अस्तित्व, आँख के पानी जितना ही था,
उन लम्हों के नगमों को, तुम कहाँ-कहाँ गाओगे?
रूखी-सूखी क्यारी में, सुख-सुमन कहाँ पाओगे?
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रविवार, 5 अप्रैल 2009
"दिल को कैसे बहलाओगे?" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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फुलवारी तो फूलों की ही होती है!
जवाब देंहटाएंमन में जो ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ बोती है!
मेरे मन में आ जाओ,
काँटों में जाते ही क्यों हो?
चुपचाप रहो मेरे मन में,
इतना पगलाते ही क्यों हो?
मित्रवर रावेन्द्रकुमार रवि जी!
जवाब देंहटाएंकवि की कल्पना की उड़ान
बहुत ऊँची होती है।
नानफनी (कैक्टस) पर भी
फूल खिलते ही हैं।
आजकल तो उसी का उपवन
सजाने का फैशन चल रहा है।
मैंने उसी की कल्पना करके
यह गीत लिखा है।
आपकी सकारात्मक टिप्पणी के लिए,
धन्यवाद।
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ....बधाई
जवाब देंहटाएंसाथ हमारा और तुम्हारा, केवल इतना ही था,
जवाब देंहटाएंसागर का अस्तित्व, आँख के पानी जितना ही था,
उन लम्हों के नगमों को, तुम कहाँ-कहाँ गाओगे?
रूखी-सूखी क्यारी में, सुख-सुमन कहाँ पाओगे?
दिल को छू जाने वाली अभिव्यक्ति.. आभार
शास्त्री जी!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गीत के लिए
मुबारकवाद।
गीत अच्छा है भैया मयंक जी।
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकार करें।
बधाई स्वीकार करें।
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी!
सरस्वती माता का आशीर्वाद सबको मिले।
जवाब देंहटाएंहमारे लिए भी दुआ करना जी।
अच्छे गीत के लिए बधाई।
अच्छी लगी आपकी यह रचना सुन्दर भाव हैं इस के
जवाब देंहटाएंवाह ! वाह ! वाह ! मर्मस्पर्शी भावपूर्ण बहुत ही सुन्दर रचना !! आनंद आ गया...आभार.
जवाब देंहटाएंमज़ा आ गया पढ़ कर
जवाब देंहटाएंसागर का अस्तित्व, आंख के पानी जितना ही था, वाह! एक अलग और निराली सोच। बहुत सुंदर।
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