गीत पुराने, नये तराने अच्छे लगते हैं। मीत पुराने, नये-जमाने अच्छे लगते हैं।
देखी जब-जब सूरत भोली, तब-तब मन हर्षाया, स्वप्न सुहाने, सुर पहचाने अच्छे लगते हैं, मीत पुराने, नये-जमाने अच्छे लगते हैं।
किसी पुराने साथी की वो, बरबस याद दिलाते, गम के गाने, नये ठिकाने अच्छे लगते हैं। मीत पुराने, नये-जमाने अच्छे लगते हैं।।
पवन-बसन्ती, रिम-झिम बून्दें, मन में आग लगाते, देश अजाने, लोग बिराने अच्छे लगते हैं। मीत पुराने, नये-जमाने अच्छे लगते हैं।। |
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मंगलवार, 21 अप्रैल 2009
"मीत पुराने, नये-जमाने अच्छे लगते हैं।" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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देश अजाने, लोग बिराने अच्छे लगते हैं।
जवाब देंहटाएंमीत पुराने, नये-जमाने अच्छे लगते हैं।।
वाह वाह...मजा़ आ गया डाक्टसाब गीत पढ़कर।
यह तो रागियों का भी है और बैरागियों का भी...
शुक्रिया....
बहुत सुंदर गीत. आनन्द आया शाश्त्री जी.
जवाब देंहटाएंरामराम.
शब्दों को बहुत सुंदर तरीके से पिरोया आपने.. आभार
जवाब देंहटाएंkhwab suhane achche lagte hain
जवाब देंहटाएंtere tarane achche lagte hain
bahut badhiya geet........dil se likha gaya.
अच्छा लगा यह गीत ..लयबद्ध है .शुक्रिया
जवाब देंहटाएंगीत के बोल बहुत मधुर है और गेयता भी है.
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