धर्मनिरपेक्ष राज-काज है। जनता का जनता पे राज है। हमको अपने भारत पे नाज़ है।। नीलकण्ठ गंगा सवाँरता, चरणों को सागर पखारता, सिर पर हिमालय का ताज है। हमको अपने भारत पे नाज़ है।। मस्जिद में गूँजती अजान हैं, मन्दिरों में राम और श्याम हैं, एकता परोसता समाज है। हमको अपने भारत पे नाज़ है।। पूजनीय लाल, बाल, पाल हैं, वन्दनीय माता के लाल हैं, जिन्होंने बचाई माँ की लाज है। हमको अपने भारत पे नाज़ है।। |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
रविवार, 8 अगस्त 2010
“हमको आपने भारत पे नाज़ है” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि ...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
बहुत भावपूर्ण रचना ....आपकी रचना में लाल , बाल , पाल को एक साथ याद किया गया ....बहुत अच्छा लगा ...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना !!
जवाब देंहटाएंबेहद भावपूर्ण और प्रेरक रचना।
जवाब देंहटाएंअपनी पोस्ट के प्रति मेरे भावों का समन्वय
कल (9/8/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
बहुत सुन्दर शास्त्री जी , क्षमा करे, वैसे आप जैसे साहित्य पुरुष को कोई साहित्यिक सजेशन देने की मेरी क्या औकात फिर भी अगर आपको ठीक लगे तो " मंदिरों में राम और श्याम की जगह भगवान् कर दे तो छंद और निखरेगा ऐसा मेरा मानना है !
जवाब देंहटाएंहमें भी बहुत नाज़ है देश पर। बहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंअति सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
उत्तम रचना.
जवाब देंहटाएं“हमको आपने भारत पे नाज़ है|”
जवाब देंहटाएंएक बेहद उम्दा और सार्थक रचना पर बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
हमें नाज़ तो करना चाहिए भारत पर ...
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता ..!
हमको अपने भारत पे नाज़ है।।
जवाब देंहटाएंभारत पे नाज है...सन्देश भी, कविता भी..बधाई.
जवाब देंहटाएंहमे भी अपने भारत पर नाज़ है। बहुत अच्छी लगी रचना। बधाई।
जवाब देंहटाएं