बेटियाँ पल रहीं कैदियों की तरह।।
लाडलों के लिए पूरे घर-बार हैं,
लाडली के लिए संकुचित द्वार हैं,
भाग्य इनको मिला कंघियों की तरह।
बेटियाँ पल रही कैदियों की तरह।।
रंक माता पिता की हैं मुश्किल बढ़ी,
ताड़ सी पुत्रियों की हैं चिन्ता बड़ी,
भूख नर की बढ़ी भेड़ियों की तरह।
बेटियाँ पल रही कैदियों की तरह।।
शादियों में बहुत माँग जर की बढ़ी,
नोट की गड्डियों पर नजर हैं गड़ी,
रोग है बढ़ रहा कोढ़ियों की तरह।
बेटियाँ पल रही कैदियों की तरह।।
इक सुख़नवर को पीड़ा रहेगी सदा,
लेखनी दर्द इनका लिखेगी सदा,
क्योंकि ससुराल है बेड़ियों की तरह।
बेटियाँ पल रही कैदियों की तरह।।
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मंगलवार, 8 जुलाई 2014
"पल रहीं कैदियों की तरह" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सही कहा आपने।
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना व लेखनी , आ. धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंवाह।
जवाब देंहटाएंअच्छी संवेदनात्मक रचना के लिए बहुत-बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा आपने .....
जवाब देंहटाएंसही है
जवाब देंहटाएंरेल बजट में नहीं दिखा 56 इँच का सीना !
http://aadhasachonline.blogspot.in/
जवाब देंहटाएं"पल रहीं कैदियों की तरह" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
उच्चारण
जिन्दगी चल रही चिमनियों की तरह।
बेटियाँ पल रहीं कैदियों की तरह।।
लाडलों के लिए पूरे घर-बार हैं,
लाडली के लिए संकुचित द्वार हैं,
भाग्य इनको मिला कंघियों की तरह।
बेटियाँ पल रही कैदियों की तरह।।