गली-गाँव में धूम मची है,
फागों और फुहारों की।।
मन में रंग-तरंग सजी है,
होली के हुलियारों की।।
गेहूँ पर छा गयीं बालियाँ,
नूतन रंग में रंगीं डालियाँ,
गूँज सुनाई देती अब भी,
बम-भोले के नारों की।।
पवन बसन्ती मन-भावन है,
मुदित हो रहा सबका मन है,
चहल-पहल फिर से लौटी है,
घर - आँगन, बाजारों की।।
जंगल की चूनर धानी है,
कोयल की मीठी बानी है,
परिवेशों में सुन्दरता है,
दुल्हिन के श्रंगारों की।।
होली लेकर, फागुन आया,
मीठी-हँसी, ठिठोली लाया,
सावन जैसी झड़ी लगी है,
प्रेम-प्रीत, मनुहारों की।।
गली-गाँव में, धूम मची है,
फागों और फुहारों की।।
मन में रंग-तरंग सजी है,
होली के हुलियारों की।।
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बुधवार, 4 मार्च 2015
"होलीगीत-जंगल की चूनर धानी है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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Bahut hi umda rachna hai...
जवाब देंहटाएंholi ki shubkamnaye aur mere blog par aapka swagat hai.
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 5-3-2015 को चर्चा मंच पर हम कहाँ जा रहे हैं { चर्चा - 1908 } पर दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
रंगों से सराबोर सुंदर रचना…रंगोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ :))
जवाब देंहटाएंफागुन की पहुनाई ,गीतों में गायी,
जवाब देंहटाएंरंगों भरी रचना मन को बहुत भायी !
बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंहोली की शुभकामनाएं !
बहुत ख़ूब...आपको और आपके पूरे परिवार को रंग पर्व होली की रंग भरी शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंहोली पर हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएं