पहली बारिश के दोहे
गरमी का मौसम गया, शुरू होआ चौमास।
नभ के निर्मल नीर से, बुझी धरा की प्यास।१।
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बारिस का जलपान कर, आम हो गये खास।
बेलज़्ज़त जो आम थे, उनमें भरी मिठास।२।
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एक दिवस में हो गया, मौसम में बदलाव।
धरती के भर जायेंगे, अब तो सारे घाव।३।
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झुलसे लू की मार से, मैदानी परिवेश।
हरी-हरी अब घास का, होगा नया निवेश।४।
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पशुओं को चारा मिले, इनसानों को अन्न।
बारिश आने से सभी, होंगे अब सम्पन्न।५।
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अपनी धुन में मगन हो, बया बुन रही नीड़।
नभ में घन को देख कर, हर्षित काफल-चीड़।६।
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जलभराव से नगर का, बदल गया भूगोल।
पहली बारिश में खुली, शासन की सब पोल।७।
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पुरवैया के साथ में, पड़ने लगी फुहार।
सूखे बाग-तड़ाग में, फिर आ गया निखार।८।
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सुख़नवरों ने कर दिये, लिखने नये क़लाम।
मजदूरों को मिल गया, खेतों में अब काम।९।
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रविवार, 14 जून 2015
दोहे-पहली बारिश "बुझी धरा की प्यास" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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