चाँदी की थाली में, सोने की चम्मच से खाने वाले।
महलों में रहने वाले करते, घोटालों पर घोटाले।।
नाम बड़े हैं दर्शन थोड़े,
गधे बन गये अरबी घोड़े,
एसी में अय्यासी करते,
नेताजी हैं बहुत निगोड़े,
खादी की केंचुलिया पहने, बैठे विषधर काले-काले।
महलों में रहने वाले करते, घोटालों पर घोटाले।।
कभी कहते जो नालायक,
वो बन बैठे आज विधायक,
सौदों में हो रही दलाली,
देख रहे सब भाग्यविनायक,
लूट रहे भोली जनता को, बनकर जन-गण के रखवाले।
बँगलों में रहने वाले करते, घोटालों पर घोटाले।।
भावनाओं को ये भड़काते,
मुद्दों को भरपूर भुनाते,
कैसे भाई चारा टूटे,
चाल दोहरी ये अपनाते,
सत्ता पर क़ाबिज़ रहने को, लील रहे हैं रोज उजाले।
महलों में रहने वाले करते, घोटालों पर घोटाले।।
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रविवार, 17 जनवरी 2016
गीत "घोटालों पर घोटाले" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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