‘धरा के रंग’
पठनीय
ही नहीं, संग्रहणीय भी है।
डॉ.
गंगाधर राय
साहित्य
और समाज में अविछिन्न संबंध रहा है। समाज में व्याप्त आकांक्षाएँ, कुंठाएँ, मूल्य और विसंगतियाँ साहित्यकारों की भाव
संवेदना को उभारकर उन्हें रचना के लिए उत्प्रेरित करती है।
गंभीर
प्रकृति की कविताएँ लिखनेवाले लोगों ने, चाहे वे भले ही आम
आदमी के सवालों को उठाते आए हों, परंतु उन्होंने कविता के
शिल्प से लेकर भाषा-शैली तथा प्रवाह को इतना क्लिष्ट बना दिया है कि उसे
जनसामान्य तो क्या, साहित्य के चतुर चितेरे भी उसे समझने
में अपने आपको असमर्थ पाते हैं। ऐसे में डॉ. रूपचंद्र शास्त्री ‘मयंक’ जी का यह काव्य-संग्रह ‘धरा के रंग’ की भाषा बड़ी ही सहज, सरल एवं बोध्गम्य है, साथ ही प्रशंसनीय भी।
कवि मयंक जी का मातृभाषा के प्रति प्रेम सहज ही
छलक उठता है -
जो लिखा है उसी को पढ़ो मित्रवर,
बोलने में कहीं बेईमानी नहीं।
व्याकरण में भरा पूर्ण विज्ञान है,
जोड़ औ’ तोड़ की कुछ कहानी नहीं।
डॉ0
शास्त्री वर्ष में एक बार मनाई जाने वाली आजादी की वर्षगाँठ से
व्यथित नजर आते हैं। आपका मानना है कि जिस तरह हम अपने आराध्य को प्रतिदिन वंदन
और नमन करते हैं उसी तरह हमें आजादी के रणबाँकुरों को प्रतिदिन सम्मान देना
चाहिए -
आओ अमर शहीदों का,
हम प्रतिदिन वन्दन-नमन करें,
आजादी की वर्षगाँठ तो,
एक साल में आती है।
‘लेकर
आऊँगा उजियारा’ कविता के माध्यम से कवि मयंक ने यह विश्वास
दिलाया है कि एक न एक दिन सबके जीवन में उजाला अवश्य आएगा। गँवई, गाँव-जमीन से जुड़ा हुआ कवि कृषि प्रधान देश में कृषि योग्य भूमि पर
कंकरीट के जंगलों ; बहुमंजिली इमारतों को देखकर चिंतित
होते हुए लिखते हैं -
सब्जी, चावल और गेंहू की,
सिमट रही खेती सारी।
शस्यश्यामला धरती पर,
उग रहे भवन भारी-भारी।।
डॉ. शास्त्री शहर के कोलाहलपूर्ण एवं प्रदूषित
वातावरण को देखते हुए आम जनमानस से नगर का मोह छोड़कर गाँव चलने का आह्नान करते
हुए लिखते हैं-
छोड़ नगर का मोह,
आओ चलें गाँव की ओर!
मन से त्यागें ऊहापोह,
आओ चलें गाँव की ओर!
अपनी
कविताओं के माध्यम से मयंक जी ने मानवता के विकास के लिए स्वप्नलोक में विचरण
करना आवश्यक बताया है तथा चलना ही जीवन है के सिद्धांत पर ‘चरैवेति चरैवेति’ का संदेश भी दिया है।
‘धरा
के रंग’ काव्य-संग्रह की एक रचना ‘बेटी
की पुकार’ में कवि ने कन्या भ्रूणहत्या जैसी सामाजिक बुराई
पर गहरी दृष्टि डाली है। स्त्री-पुरुष लिंगानुपात कवि का चिंतनीय वर्ण्य विषय
है।
समाज
में समाप्त हो रहे आपसी सौहार्द्र, भाईचारा, प्रेम, सहयोग से उत्पन्न विषम परिस्थितियों पर
चिंता व्यक्त करते हुए कवि मयंक ने ‘पा जाऊँ यदि प्यार
तुम्हारा’ लिखकर यह संदेश देना चाहा है कि ढाई अक्षर प्रेम
का पढ़े सो पंडितहोय। प्रेम असंभव को भी संभव बना देता है-
कंकड़ को भगवान मान लूँ,
पा जाऊँ यदि प्यार तुम्हारा!
काँटों को वरदान मान लूँ,
पा जाऊँ यदि प्यार तुम्हारा!
कुल
मिलाकर प्रस्तुत काव्य-संग्रह ‘धरा के रंग’ केवल पठनीय ही नहीं वरन् संग्रहणीय भी है। नयनाभिराम मुखपृष्ठ, स्तरीय सामग्री तथा निर्दोष मुद्रण सभी दृष्टियों से यह स्वागत योग्य
है। मुझे विश्वास है कि मयंक जी इसी प्रकारअधिकाधिक एवं उत्तमोत्तम ग्रंथों की
रचना कर हिंदी की सेवा में अग्रणी बनेंगे।
-डॉ. गंगाधर राय
संस्कार भारती, संभाग संयोजक,
कुमाऊँ मंडल, उत्तराखंड
टीचर्स कॉलोनी, खटीमा,
उत्तराखंड - 262308.
|
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गुरुवार, 22 सितंबर 2016
"‘धरा के रंग’ पठनीय ही नहीं, संग्रहणीय भी है" (डॉ. गंगाधर राय)
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मेरे विचार में यह आलेख आवश्य पूर्ती सहायक होगा !-"भारत का ऐतिहासिक व्यक्तित्व "
जवाब देंहटाएंभारत के सम्पूर्ण व्यक्तित्व का ज्ञान जानने हेतु इसके ऐतिहासिक भू के पृष्ठ बूमी का ज्ञान आवश्यक है | कारण ऐतिहासिक विरासत ही आर्थिक सामाजिक मूल्यों के निर्धारण में अहम भूमिका का कार्य करती हैं | पूर्वजों द्वारा प्राप्य उपलब्धियां हमारी सामाजिक आर्थिक उन्नयन में निर्देशिका बनकर कार्य करती हैं | जिससे समाज के विकास सांस्कृतिक परिदृश्य को दीर्घाकार बनाने में मदद मिलती है |
भारत के राष्ट्रीय पक्ष से परिलक्षित होता है की इसका ऐतिहासिक पक्ष भारत के राष्ट्रीय स्वरुप के निर्माण में विविधता पूर्ण रहा है |
वास्तव में भारत के हजारों वर्ष की ऐतिहासिक विरासत की अनदेखी की गयी इसके व्यक्तित्व को आधा अधूरा समझने की वजह रही है | भारत के व्यक्तित्व का मूल्यांकन करने में भौगोलिक पक्ष की तरफ कम ध्यान दिया गया | यही अवधारणा रही कि भारतीय संस्कृति की विविधता में एकता का दर्शन होता है | भारत के इसतरह के विरोधाभास को जानने -समझने के निमित्त भारत के भू -ऐतिहासिक विरासत का मूल्यांकन करना अतिआवश्यक है |
सम्पूर्ण विश्व में एक मात्र ऐसा भौगोलिक प्रखंड भारतीय उप -महाद्वीप है जहां अनंत काल से अनुकूल भौतिक परिवेश विद्यमान रहा है |यही वजह रही है कि मानव सभ्यता -संस्कृति अखंडित रही है | भारत का प्रकृति प्रदत्त भौतिक परिवेश और उसका मानव पर पड़ने वाले प्रभाव की दें है | जब की भूगोल के विज्ञानी अधिकांशतः विद्वान इसके भौतिक ,आर्थिक तथा सामाजिक पक्ष तक ही सीमित रहने के पक्षधर हैं |
भारतीय सभ्यता और संस्कृति बहुमुखी प्रतिभासंपन्न है जो वाह्य संस्कृति सामग्री को आत्मसात करने में सदा से ही सक्षम रही है | भारत के भू-ऐतिहासिक विरासत को भौगोलिक दृष्टिकोण से 'भारत भूमि का उद्भव 'की जिज्ञासा मानव में जागृत होना स्वाभाविक है |
शुभकामनाएं सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाएं और बधाई
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाएं और बधाई
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