रौनक घर में तुमसे ही है,
तुमसे ही अस्तित्व हमारा।
धन्य हुआ है जीवन अपना,
पा करके अपनत्व तुम्हारा।।
खनक रहे हैं बर्तन सारे,
चहक रही है भोजनशाला।
भाँति-भाति के पकवानों से,
महक रही अवगुंठित माला।
रोटी-दाल-भात सबमें ही,
रचा-बसा अमृत्व तुम्हारा।
धन्य हुआ है जीवन अपना,
पा करके अपनत्व तुम्हारा।।
तुमसे ही जग अच्छा लगता,
तुमसे ही है दुनियादारी।
तुमसे ही फल-फूल रही है,
वंश-बेल की ये फुलवारी।
धन्य हुए हैं बेटे-पोते,
पाकर के मातृत्व तुम्हारा।
धन्य हुआ है जीवन अपना,
पा करके अपनत्व तुम्हारा।।
चाहे आलीशान भवन हो,
लेकिन घर है घरवाली से।
उपवन तो सुरभित होता है,
केवल उपवन के माली से।
रमा हुआ घर की माटी के,
कण-कण में है तत्व तुम्हारा।
धन्य हुआ है जीवन अपना,
पा करके अपनत्व तुम्हारा।।
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मंगलवार, 28 फ़रवरी 2017
गीत "तुमसे ही है दुनियादारी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जवाब देंहटाएंवाह ।
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