नहीं मिलेगी किसी को, बत्ती नीली-लाल।
अफसरशाही को हुआ, इसका बहुत मलाल।।
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लाल बत्तियों पर लगी, अब भगवा की रोक।।
सत्ता भोग-विलास में, छाया भारी शोक।।
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लालबत्तियाँ पूछतीं, शासन से ये राज़।
इतने दशकों बाद क्यों, गिरी अचानक ग़ाज़।।
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नेताओं का पड़ गया, चेहरा आज सफेद।
पलक झपकते मिट गया, आम-खास का भेद।।
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देखे कब तक चलेगा, यह शाही फरमान।
दशकों की जागीर का, लुटा आज अभिमान।।
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समय-समय की बात है, समय-समय का फेर।
नहीं मिलेगी भोज में, तीतर और बटेर।।
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अच्छा है यह फैसला, भले हुई हो देर।
एक घाट पर पियेंगे, पानी, बकरी-शेर।।
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भारी मन से हो रहा, निर्णय यह स्वीकार।
सजी-धजी इस कार का, उजड़ गया सिंगार।।
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रविवार, 23 अप्रैल 2017
दोहे "बत्ती नीली-लाल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सुन्दर।
जवाब देंहटाएंBahut sunder
जवाब देंहटाएंवाह ... मस्त हैं सभी दोहे ... अब तो इतिहास होने वाला है लाल बत्ती का चलन ...
जवाब देंहटाएंबढ़िया दोहे। लाल हो रहे हैं अफसर नेता लाल बत्ती न पाकर।
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