काम-काम में दिन गया, आयी सुख की रात।।
आयी सुख की रात, मिले आराम बदन को।
भटकाना मत कभी, रात में अपने मन को।।
कह “मयंक” कविराय, उठो सुख-चैन मना कर।
कुछ अभिनव सन्देश, सुनाओ गीत बना कर।।
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चहकी कोयल बाग में, देख आम पर बौर।
कुदरत के उपहार को, धरती है सिरमौर।।
धरती है सिरमौर, खुशी के गीत सुनाती।
अपने मीठे सुर से, खुशियों को उपजाती।।
कह “मयंक” कविराय, आज शाखाएँ बहकी।
होकर भावविभोर, तभी तो कोयल चहकी।।
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सोमवार, 8 मई 2017
कुण्डलियाँ "आज शाखाएँ बहकी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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होकर भावविभोर, तभी तो कोयल चहकी।।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंकह “मयंक” कविराय, आज शाखाएँ बहकी।
जवाब देंहटाएंहोकर भावविभोर, तभी तो कोयल चहकी।।
आदरणीय , अलंकृत पंक्तियाँ ,सुन्दर ! रचना हृदय से निकले शब्द ,आभार। "एकलव्य"
वाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ....लाजवाब