पवन बसन्ती लुप्त हो गई,
मौसम ने ली है अँगड़ाई।
गेहूँ की बालियाँ सुखाने,
पछुआ पश्चिम से है आई।।
पर्वत का हिम पिघल रहा है,
निर्झर बनकर मचल रहा है,
जामुन-आम-नीम गदराये,
फिर से बगिया है बौराई।
गेहूँ की बालियाँ सुखाने,
पछुआ पश्चिम से है आई।।
रजनी में चन्दा दमका है,
पूरब में सूरज चमका है,
फुदक-फुदककर शाखाओं पर,
कोयलिया ने तान सुनाई।
गेहूँ की बालियाँ सुखाने,
पछुआ पश्चिम से है आई।।
वन-उपवन की शान निराली,
चारों ओर विछी हरियाली,
हँसते-गाते सुमन चमन में,
भँवरों ने गुंजार मचाई।
गेहूँ की बालियाँ सुखाने,
पछुआ पश्चिम से है आई।।
सरसों का है रूप सलोना,
कितना सुन्दर बिछा बिछौना,
मधुमक्खी पराग लेने को,
खिलते गुंचों पर मँडराई।
गेहूँ की बालियाँ सुखाने,
पछुआ पश्चिम से है आई।।
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बुधवार, 27 फ़रवरी 2019
गीत "फिर से बगिया है बौराई" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28.02.2019 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3261 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
wow nice post great
जवाब देंहटाएंbahut achha hai
Internet Day - Internet Ki Jankari Hindi Me
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जवाब देंहटाएंiAMHJA
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जवाब देंहटाएंvery nice really like it.
जवाब देंहटाएंhindi shayari
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