भाँति-भाँति के रच रहे, ढोंगी यहाँ
प्रपंच।।
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खान-पान दूषित हुआ, दूषित हुए विचार।
कूड़े-कचरे से हुई, दूषित जल की धार।।
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संस्कार दम तोड़ता, मन में भरे विकार।
कदम-कदम पर देश में, फैला भ्रष्टाचार।।
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नहीं रही है आजकल, प्रीत और मनुहार।
राजनीति में दम्भ से, खिसक रहा आधार।।
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चाहे कोई भी रहे, दल-बल का सरदार।
राजनीति में हो रही, चमचों की भरमार।।
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मनचाही मिलती रकम, हाट हुए गुलजार।
जनसेवक सब जगह हैं, बिकने को तैयार।।
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नामदार सब हो गये, अब तो चौकीदार।
राजनीति में आ गये, अब शातिर मक्कार।।
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शनिवार, 23 मार्च 2019
दोहे "लोग खोजते मंच" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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bahut hi badhiya post likha hai aapne Windows 7 window 8 windows 10 download Kaise Kare
जवाब देंहटाएंसटीक रचना
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