कीचड़ से बरसात
में, सड़के हैं लवरेज।
कोशिश करके घरों
को, निर्धन रहे सहेज।।
--
जगह-जगह होने लगा,
पानी का ठहराव।
नदियाँ भी तटबन्ध
का, करने लगीं कटाव।।
--
नक्शा बदला नगर
का, बिगड़ गया भूगोल।
पहली बारिश में
खुली, इन्तजाम की पोल।।
--
उगने लगी जमीन पर,
हरी-हरी अब घास।
बारिश से पूरी
हुई, पशुओं की भी आस।।
--
बदल गयी बरसात से,
नदियों की तकदीर।
बारिश ने है भर दिया, तालाबों में नीर।।
--
इन्द्रदेवता देश
में, बाँट रहे उपहार।
बहा ले गयी
गन्दगी, सब नदियों की धार।।
--
लालच में पड़कर
कभी, खोना मत किरदार।।
पहरेदारों देश के,
बनना पानीदार।
--
|
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गुरुवार, 11 जुलाई 2019
दोहे "बनना पानीदार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (13 -07-2019) को "बहते चिनाब " (चर्चा अंक- 3395) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
सटीक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं