भौंहें वक्र-कमान न कर लक्ष्यहीन संधान न कर ओछी हरक़त करके बन्दे दुनिया को हैरान न कर दीन-धर्म पर करके दंगे ईश्वर का अपमान न कर मन पर काबू करले प्यारे दिल को बेईमान न कर जल-जंगल से ही जीवन है दोहन और कटान न कर जो जनता को आहत करदे ऐसे कभी बयान न कर जिससे हो नुकसान वतन का ज़ारी वो फ़रमान न कर नहीं सलामत “रूप” रहेगा सूरत पर अभिमान न कर |
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मंगलवार, 7 सितंबर 2021
ग़ज़ल "दिल को बेईमान न कर" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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जल-जंगल से ही जीवन है
जवाब देंहटाएंदोहन और कटान न कर
जो जनता को आहत करदे
ऐसे कभी बयान न कर
जिससे हो नुकसान वतन का
ज़ारी वो फ़रमान न कर
नहीं सलामत “रूप” रहेगा
सूरत पर अभिमान न कर.
बेहतरीन ग़ज़ल कही है ज़नाब ने ,न जावेद रहेगा न जावेदाँ (रूह )रहेगी बस बाकी सबकुछ फ़ानी है ,ये काया ,जो फ़ानी है इससे भी कुछ काम तो कर ,ऊंचा अपना नाम तो कर।
जावेद फ़ारसी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है -दाइमी ,बे -इंतहा ,अनंत ,सदा बने रहने वाला ,शाश्वत ,नित्य
जिस्म अपने फ़ानी हैं जान अपनी फ़ानी है ,फ़ानी है ये दुनिया भी ,
फिर भी फ़ानी दुनिया में जावेदाँ तो मैं भी हूँ ,जावेदाँ तो तुम भी हो।
हयात-ए-जावेदाँ हम क्या करेंगे
जहाँ तुम हो वहाँ हम क्या करेंगे
फ़ानी पर शेर
veeruji05.blogspot.com
जल-जंगल से ही जीवन है
जवाब देंहटाएंदोहन और कटान न कर
जो जनता को आहत करदे
ऐसे कभी बयान न कर
जिससे हो नुकसान वतन का
ज़ारी वो फ़रमान न कर
नहीं सलामत “रूप” रहेगा
सूरत पर अभिमान न कर.
बेहतरीन ग़ज़ल कही है ज़नाब ने
जावेद रहेगा , जावेदाँ (रूह )रहेगी बस बाकी सबकुछ फ़ानी है ,ये काया ,जो फ़ानी है इससे भी कुछ काम तो कर ,ऊंचा अपना नाम तो कर।
जावेद फ़ारसी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है -दाइमी ,बे -इंतहा ,अनंत ,सदा बने रहने वाला ,शाश्वत ,नित्य
जिस्म अपने फ़ानी हैं जान अपनी फ़ानी है ,फ़ानी है ये दुनिया भी ,
फिर भी फ़ानी दुनिया में जावेदाँ तो मैं भी हूँ ,जावेदाँ तो तुम भी हो।
हयात-ए-जावेदाँ हम क्या करेंगे
जहाँ तुम हो वहाँ हम क्या करेंगे
फ़ानी पर शेर
kabirakhadabazarmein.blogspot.com
वाह
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी गजल। अभी-अभी फेस बुक पर साझा की है।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर सराहनीय गजल
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर शिक्षाप्रद ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार (9-09-2021 ) को 'जल-जंगल से ही जीवन है' (चर्चा अंक 4182) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
ओछी हरक़त करके बन्दे
जवाब देंहटाएंदुनिया को हैरान न कर….
बहुत सुन्दर ग़ज़ल!