मुझसे बतियाने को कोई, चेली बन जाया करती है! उसकी बातें सुनकर मुझको, हँसी बहुत आया करती है! जान और पहचान नही है, देश-वेश का ज्ञान नही है, टूटी-फूटी रोमन-हिन्दी, हमें चिढ़ाया सा करती है! तब मुझको बातों-बातों में, हँसी बहुत आया करती है! कोई बिटिया बन जाती है, कोई भगिनी बन जाती है, कोई-कोई तो बुड्ढे की, साली कहलाया करती है! तब मुझको बातों-बातों में, हँसी बहुत आया करती है! आँख लगी तो सपना आया, आँख खुली तो मैंने पाया, बिन सिर पैरों की लिखने से, सैंडिल पड़ जाया करती हैं! तब मुझको बातों-बातों में, हँसी बहुत आया करती है! जाल-जगत की महिमा न्यारी, वाह-वाही लगती है प्यारी, जालजगत पर सबको अपनी, श्लाघा मन-भाया करती है! तब मुझको बातों-बातों में, हँसी बहुत आया करती है! |
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सोमवार, 25 अक्टूबर 2021
गीत "टूटी-फूटी रोमन-हिन्दी, हमें चिढ़ाया सा करती है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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जाल-जगत की महिमा न्यारी,
जवाब देंहटाएंवाह-वाही लगती है प्यारी,
जालजगत पर सबको अपनी,
श्लाघा मन-भाया करती है!
तब मुझको बातों-बातों में,
हँसी बहुत आया करती है!
एकदम सटीक सच्ची बातें कही हैं आपने
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (26 -10-21) को "अदालत अन्तरात्मा की.."( चर्चा अंक4228) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
--
कामिनी सिन्हा
आ0 अति उत्तम
जवाब देंहटाएंअप्रतिम रचना।
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना महोदय ।
जवाब देंहटाएं