जग को राह दिखाओगे कब -- अभिनव कोई गीत बनाओ, घूम-घूमकर उसे सुनाओ स्नेह-सुधा की धार बहाओ वसुधा को सरसाओगे कब जग को राह दिखाओगे कब -- सुस्ती-आलस दूर भगा दो देशप्रेम की अलख जगा दो श्रम करने की ललक लगा दो नवअंकुर उपजाओगे कब जग को राह दिखाओगे कब -- देवताओं के परिवारों से ऊबड़-खाबड़ गलियारों से पर्वत के शीतल धारों से नूतन गंगा लाओगे कब जग को राह दिखाओगे कब -- सही दिशा दुनिया को देना कलम कभी मत रुकने देना भाल न अपना झुकने देना सच्चे कवि कहलाओगे तब जग को राह दिखाओगे तब -- |
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रविवार, 24 अप्रैल 2022
गीत "नवअंकुर उपजाओगे कब" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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वाह!बहुत सुंदर सर।
जवाब देंहटाएंसादर
मनुष्य की मानसिकता को जागरूक करती बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआप हमेशा सार्थक सृजन करते हैं
सादर