-१- हैं शीतलता-उष्णता, जीवन के आधार। जब तक सूरज-चन्द्रमा, तब तक ही संसार।। -२- चन्दा में होती नहीं, सूरज जैसी धूप। शीतलता को बाँटता, उसका प्यारा रूप।। -३- चन्दा चमका गगन में, पसरी धवल उजास। कुदरत के उपहार का, करना मत परिहास।। -४- एक जगाता काम को, एक बताता काम। सूरज देता एक उष्णता, चन्दा दे आराम।। -५- दोनों ही दिन-रात में, जगा रहे हैं आस। सूरज देता प्यास को, चाँद बुझाता प्यास।। -६- ओस चाटने से कभी, नहीं मिटेगी प्यास। तारों से होती नहीं, जग में कभी उजास।। -७- आदिकाल से चल रहा, धूप-छाँव का खेल। चौराहों पर राह का, हो जाता है मेल।। -- |
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गुरुवार, 16 मार्च 2023
दोहे "पसरी धवल उजास" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार (16-3-23} को "पसरी धवल उजास" (चर्चा अंक 4647) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
वाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर एवं सार्थक दोहे...
लाजवाब ।
सुंदर दोहे
जवाब देंहटाएं