-- जिस उपवन में पढ़े-लिखे हों रोजी को लाचार। उस कानन में स्वतन्त्रता का नारा है बेकार।। -- जिनके बंगलों के ऊपर, निर्लज्ज ध्वजा लहराती, रैन-दिवस चरणों को जिनके, निर्धन सुता दबाती, जिस आँगन में खुलकर होता सत्ता का व्यापार। उस कानन में स्वतन्त्रता का नारा है बेकार।। -- मुस्टण्डों को दूध-मखाने, बालक भूखों मरते, जोशी, मुल्ला, पीर, नजूमी, दौलत से घर भरते, भोग रहे सुख आजादी का, बेईमान मक्कार। उस कानन में स्वतन्त्रता का नारा है बेकार।। -- |
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शनिवार, 5 अगस्त 2023
गीत "स्वतन्त्रता का नारा है बेकार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (०६-०८-२०२३) को 'क्यूँ परेशां है ये नज़र '(चर्चा अंक-४६७५ ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
वयोवृद्ध सीधा-सच्चा,
जवाब देंहटाएंहो जहाँ भूख से मरता,
सत्तामद में चूर वहाँ हो,
शासक काजू चरता,
ऐसे निष्ठुर मन्त्री को, क्यों झेल रही सरकार।
उस कानन में स्वतन्त्रता का नारा है बेकार।।
वाह!!!
बहुत सटीक एवं सार्थक प्रस्तुति ।
सुन्दर
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सृजन
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