-- माँ के चरणों में करूँ, अर्पित
सब अनुभाव। माता का सन्तान से, होता
अधिक लगाव।। -- जब-जब माँ के चित्र पर, झुकता
मेरा शीश। तब-तब वो परलोक से, देतीं
शुभ आशीष।। -- माँ होती ममतामयी, रखती
सबका ध्यान। जीवन के हर मोड़ पर, देती
जग का ज्ञान।। -- जीवित माता-पिता हैं, धरती
पर भगवान। उनको देना चाहिए, पग-पग
पर सम्मान।। -- पैंसठ वर्षों तक मिला, मुझको
माँ का प्यार। अबकी होली पर रहा, फीका
यह त्यौहार।। -- यही विनय है आपसे, मेरी
हे करतार। देना फिर से जगत में, माता
को अवतार।। -- माता जैसा है नहीं, दूजा
जग में कोय। जिस घर में माता रहे, वहाँ
विधाता होय।। -- |
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गुरुवार, 28 मार्च 2024
दोहे "माँ होती ममतामयी, रखती सबका ध्यान" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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