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मंगलवार, 8 दिसंबर 2009
"हम बसे हैं पहाड़ों के परिवार में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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अपने परिवेश के प्रति गहरा अनुराग व्यक्त करती सुन्दर रचना के लिये बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत खूब, आप धन्य है जो आज भी अपने उन पत्थरो से बात करने का सौभाग्य आपको मिला हुआ है ! मैंने भी उन पत्थरो से बचपन में बहुत सारी बाते की थी, और आज उनसे बात करने को तरस जाता हूँ !
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावमय प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएंदर्द सहते हैं और आह भरते नही,
जवाब देंहटाएंये कभी सत्य कहने से डरते नही,
गर्जना है भरी इनकी हुंकार में।
ये तो शामिल हमारे हैं परिवार में।।
बिल्कुल सही लिखा है आपने! बेहद सुंदर और भावपूर्ण रचना!
बहुत ही भावमय प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंदेवता हैं यही, ये ही भगवान हैं,
जवाब देंहटाएंसभ्यता से भरी एक पहचान हैं,
अनूठे भाव लिए कविता
कविता इतनी मार्मिक है कि सीधे दिल तक उतर आती है।
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी, सुन्दर कविता... पत्थरों से भी प्रीत की बात....साधू!!
जवाब देंहटाएंबात करते हैं हम पत्थरों से सदा,
जवाब देंहटाएंहम बसे हैं पहाड़ों के परिवार में।
प्यार करते हैं हम पत्थरों से सदा,
ये तो शामिल हमारे हैं संसार में।।
waah..........adbhut.
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा रविवार ( 16-05-2021) को
"हम बसे हैं पहाड़ों के परिवार में"(चर्चा अंक-4067) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित है.धन्यवाद
…
"मीना भारद्वाज"
दर्द सहते हैं और आह भरते नही,
जवाब देंहटाएंये कभी सत्य कहने से डरते नही,
गर्जना है भरी इनकी हुंकार में।
ये तो शामिल हमारे हैं परिवार में।।---बहुत शानदार पंक्तियां आदरणीय।
वाह!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंदेवता हैं यही, ये ही भगवान हैं,
जवाब देंहटाएंसभ्यता से भरी एक पहचान हैं,
हमने इनको सजाया है घर-द्वार में।
ये तो शामिल हमारे हैं परिवार में।।----बहुत सुंदर
देवता हैं यही, ये ही भगवान हैं,
जवाब देंहटाएंसभ्यता से भरी एक पहचान हैं,
हमने इनको सजाया है घर-द्वार में।
ये तो शामिल हमारे हैं परिवार में।।
aadarneey shashtri ji man gadgad ho utha aapki rachna se, ek kavi ke hriday mein base pahad ko naman hai
सरल नहीं पहाड़
जवाब देंहटाएंपहाड़ से जिंदगी होती है
बहुत सुन्दर
वन्दन
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
बहुत ही सुंदर सर।
जवाब देंहटाएंसादर
बात करते हैं हम पत्थरों से सदा,
जवाब देंहटाएंहम बसे हैं पहाड़ों के परिवार में।
प्यार करते हैं हम पत्थरों से सदा,
ये तो शामिल हमारे हैं संसार में।।
पहाड़ों का मानवीकरण करती बहुत सुंदर रचना आदरणीय 🙏