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गुरुवार, 10 दिसंबर 2009
"कोई नही सुनता पुकार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
मानवाधिकार
कोई नही सुनता पुकार
आयोग है
राजनीति का शिकार
कहने पर प्रतिबन्ध
सुनने पर प्रतिबन्ध
खाने पर प्रतिबन्ध
पीने पर प्रतिबन्ध
जाने पर प्रतिबऩ्ध
जीने पर प्रतिबऩ्ध
मँहगाई की मार
रिश्वत का बाजार
निर्धन की हार
दहेज की भरमार
नौकरशाही का रौब
पुलिस का खौफ
दलित की पुकार
बेरहम संसार
कानून का द्वार
बन्दी हैं अधिकार
सोई है सरकार
जागे हैं मक्कार
नालों का संगम
गंगा है बेदम
बढ़ता प्रदूषण
नारि का शोषण
शिक्षा का जनाजा
भिक्षा का खजाना
बस्ता है भारी
ढोना लाचारी
मानवाधिकार
कोई नही सुनता पुकार
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bahut he sundar....
जवाब देंहटाएंaatma ko jagaane wali baat kahi hai aapne shastri ji...
aap hamesha he samajik muddon ko le kar likhte hain...
bahut he bahut shukriya...
सुंदर और सार्थक कविता.......
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और ह्रिदय को छूने वाली रचना ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना...इंसान की बेबसी दर्शाती हुई
जवाब देंहटाएंआपने कविता के माध्यम से जो आवाज उठाई है वह प्रशंसनीय है।
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी
जवाब देंहटाएंहमारा भी चीत्कार,
जनता का हाहाकार
व्यर्थ जाता बेकार,
व्यवस्था की मार
प्रधानमंत्री लाचार
भष्ट सरकार
बाल रोजगार
युवा बेरोजगार
अनुभव का तिरस्कार
धर्म लज्जित बेकार
पूजित उसके ठेकेदार
केवल स्वप्न का आधार
लोकतंत्र की हार
वर्तमान के हालातों पर चिंतन जगाती कविता
वाह...!
जवाब देंहटाएंसुधीर जी!
बहुत खूब....!
काव्यमय टिप्पणी !
आभार!
कोई नही सुनता पुकार ...बहुत सही कहा ...!!
जवाब देंहटाएंपुकार कभी व्यर्थ नहीं जाती..
जवाब देंहटाएंजरूर सुनी जाएगी एक न एक दिन
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अच्छा तो कल आपके मन म्वें< यह सब चल रहा था !
बढ़्या जी
kahin karo pukar
जवाब देंहटाएंhar taraf hai hahakar
vedna ko shabdon mein
bandhte raho
farz apna nibhate raho
kahin nhi sunwayi hai
paise ke sab hain gulaam
phir bhi karte raho pukar
aap bahut hi umda karya kar rahe hain......hum sab aapke sath hain.
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (12-07-2021 ) को 'मानसून जो अब तक दिल्ली नहीं पहुँचा है' (चर्चा अंक 4123) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत गहन रचना है आदरणीय शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसच कहा सर बहुत ही सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर
अच्छी फटकार !
जवाब देंहटाएंमन की वेदना का घड़ा भर जाए तो सबकी पोल खुल जाती है। सादर प्रणाम।
वाह ,
जवाब देंहटाएंसही अभिव्यक्ति ! आभार शास्त्री जी