आम नहीं अब रहा आम, वो तो है केवल खास का।
नजर नहीं आता बैंगन भी, यहाँ कोई विश्वास का।।
अब तो भिण्डी,
लौकी-तोरी संकर नस्लों
वाली हैं,
कद्दू के पिछलग्गू भी अब खाने लगे दलाली हैं,
टिण्डा और करेला भी तो, पात्र बना परिहास का।
नजर नहीं आता बैंगन भी, यहाँ कोई विश्वास का।।
केला-सेब-पपीता भी तो, खाने लगे दवाई को,
बच्चे तरस रहें हैं कब से, खोया और मलाई को,
जूस मिलावट वाला पाकर, घुटता गला सुवास का।
नजर नहीं आता बैंगन भी यहाँ कोई विश्वास का।।
खरबूजा-तरबूज सभी के, भाव चढ़े बाजारों में,
धनवानों ने कैद करी हैं, लीची कारागारों में,
नहीं मिठाई में आता, नैसर्गिक स्वाद मिठास का।
नजर नहीं आता बैंगन
भी, यहाँ कोई विश्वास का।।
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रविवार, 2 जून 2013
"आम हो गया खास का" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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नहीं मिठाई में आता, नैसर्गिक स्वाद मिठास का।
नजर नहीं आता बैंगन भी, यहाँ कोई विश्वास का।।
बहुत सुंदर रचना ,,,
recent post : ऐसी गजल गाता नही,
लालच पैसों की बढ़ी, अनुशासन सब भंग
जवाब देंहटाएंफल - सब्जी पर चढ़ रहे, हैं जहरीले रंग
हैं जहरीले रंग , फिकर किसको है प्यारे
सेहत जाये भाड़ , सभी के वारे-न्यारे
बढ़े नफा हर हाल,यही है इस युग का सच
अनुशासन सब भंग , बढ़ी पैसों की लालच ||
वाह गुरु जी वाह
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (03-06-2013) के :चर्चा मंच 1264 पर ,अपनी प्रतिक्रिया के लिए पधारें
सूचनार्थ |
बहुत सुंदर रचना ,,,
जवाब देंहटाएंवाह, चित्र भी थाली के बैगन का
जवाब देंहटाएंजेनेटिकली मोडीफाईड सीड्स बाजार में आने को तैयार बैठे हैं.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति .पूर्णतया सहमत बिल्कुल सही कहा है आपने ..आभार . ''शादी करके फंस गया यार ,...अच्छा खासा था कुंवारा .'' साथ ही जानिए संपत्ति के अधिकार का इतिहास संपत्ति का अधिकार -3महिलाओं के लिए अनोखी शुरुआत आज ही जुड़ेंWOMAN ABOUT MAN
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन
जवाब देंहटाएंनहीं मिठाई में आता, नैसर्गिक स्वाद मिठास का।
जवाब देंहटाएंनजर नहीं आता बैंगन भी, यहाँ कोई विश्वास का।।---बहुत सुंदर रचना !
LATEST POSTअनुभूति : विविधा ३
latest post बादल तु जल्दी आना रे (भाग २)
वैसे पढने तो आम को आयी थी पर मिल गया ख़ास ......... सादर !
जवाब देंहटाएंबढिया
जवाब देंहटाएंक्या बात
एक आम आदमी की कसक को आपने बहुत ही पुरजोर अभिव्यक्ति दी है। बधाई स्वीकारें गुरूवर !
जवाब देंहटाएं