आपाधापी
की दुनिया में,
ऐसे
मीत-स्वजन देखे हैं।
बुरे
वक्त में करें किनारा,
ऐसे कई
सुमन देखे हैं।।
धीर-वीर-गम्भीर
मौन है,
कायर केवल
शोर मचाता।
ओछी
गगरी ही बतियाती,
भरा घड़ा
कुछ बोल न पाता।
बरस न
पाते गर्जन वाले,
हमने वो
सावन देखे हैं।
बुरे
वक्त में करें किनारा,
ऐसे कई
सुमन देखे हैं।।
जब तक
है लावण्य देह में,
दुनिया
तब तक प्रीत निभाती।
माया-मोह
धरे रह जाते,
जब दिल
की धड़कन थम जाती।
सम्बन्धों
को धता बताते,
ऐसे घर-आँगन
देखे हैं।
बुरे
वक्त में करें किनारा,
ऐसे कई
सुमन देखे हैं।।
ऐसे भी
साहित्यकार हैं,
जो खुदगर्ज़ी
को अपनाते।
बने मील
के पत्थर जैसे,
लोगों
को ही पथ दिखलाते।
जिनका
अन्तस्थल पाहन सा,
वो माणिक-कंचन
देखे हैं।
बने मील
के पत्थर जैसे,
औरों को
ही राह बताते।
जो संवेदनशील
नहीं है,
वो मानव
दानव कहलाता।
रंग
बदलता गिरगिट जैसा,
अपना असली
“रूप” छिपाता।
अपने
बिरुए निगल रहे जो,
वो निष्ठुर उपवन देखे हैं।
|
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गुरुवार, 26 दिसंबर 2013
"निष्ठुर उपवन देखे हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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यथार्थ का कटु चित्रण ....
जवाब देंहटाएंवाह
सत्य है !
जवाब देंहटाएंsahi baat sundarta ke saath kahee aapne...
जवाब देंहटाएंbadhai
saadar
bahut achchhe se apni baat kavita men kah di hai aapne...badhiya .
जवाब देंहटाएंसच को उजागर करती रचना !
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट मेरे सपनो के रामराज्य (भाग तीन -अन्तिम भाग)
नई पोस्ट ईशु का जन्म !
जीवन का सत्य उजागर करती रचना.................
जवाब देंहटाएंजो संवेदनशील नहीं है,
जवाब देंहटाएंवो मानव दानव कहलाता।
रंग बदलता गिरगिट जैसा,
अपना असली “रूप” छिपाता।
अपने बिरुए निगल रहे जो,
वो निष्ठुर उपवन देखे हैं।
बहुत सुंदर रचना.
सम्बन्धों को धता बताते,
जवाब देंहटाएंऐसे घर-आँगन देखे हैं।
बुरे वक्त में करें किनारा,
ऐसे कई सुमन देखे हैं।।
***
कटु यथार्थ का सहज चित्रण...!
अच्छी शान्त और गंभीर प्रस्तुति है ! संसार की वास्तविकता उदघाटन सराहनीय है !
जवाब देंहटाएंआपकी इस ब्लॉग-प्रस्तुति को हिंदी ब्लॉगजगत की सर्वश्रेष्ठ कड़ियाँ (26 दिसंबर, 2013) में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,,सादर …. आभार।।
जवाब देंहटाएंकृपया "ब्लॉग - चिठ्ठा" के फेसबुक पेज को भी लाइक करें :- ब्लॉग - चिठ्ठा