गम का अम्बार लिए बैठा हूँ
लुटा दरबार लिए बैठा हूँ
नाव अब पार लगेगी
टूटी पतवार लिए बैठा हूँ
जा चुकी है कभी की सरदारी
फिर भी दस्तार लिए बैठा हूँ
बेईमानों के बीच में रहकर
पाक किरदार लिए बैठा हूँ
इश्क के खेल का खिलाड़ी हूँ
जीत में हार लिए बैठा हूँ
देख हालत बुरी ज़माने की
दिल में अंगार लिए बैठा हूँ
रुपहले “रूप” के इदारों में
मैं कल़मकार लिए बैठा हूँ
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मंगलवार, 5 जुलाई 2016
मेरी गज़ल "जय-विजय-जुलाईः2016" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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कहानी - तड़पते पक्षी की मृत्यु - धर्मेन्द्र सिंह इंडिया
जवाब देंहटाएंतड़पते पक्षी की मृत्यु
बर्षा ऋतु के मौसम अनुसार, मैं आनंदित होता हुआ टहल रहा था। बर्षा के नन्हे-नन्हे टपकों को सह रहा था। मैं दायें हाथ में छाता पकड़े हुआ था परन्तु भीग रहा था। प्रकृति के सौन्दर्य स्वरूप को आंखें भर देख रहा था इस प्रकार की मानो काँच में जड़ी हुयी तस्वीर हो। मैं इतना प्रसन्न था कि मेरी प्रसन्नता कोई चुरा न सके। वहीं उस सड़क पर कई लोग मेरी तरह आनन्दित थे। कोई पेड़ देख रहा था तो कोई आसमान। अचानक एक पक्षी हवा में तैरता हुआ नीचे इस प्रकार आया जैसे मुझे प्रेरित कर रहा हो परन्तु मैं उस पक्षी के नन्होंरे सूचकों को नही समझ सका। जब मैने सोचकर देखा तो मन में सहायता के लिये प्रश्न बना।
कदमों को बढ़ाते हुये पक्षी के पास सड़क को पार करके पहुंचा यो देखा कि वह एक वश पक्षी नहीं बल्कि नन्हीसी चिड़िया थी। वह चिड़िया पंखों को बिखराकर बैठी हुयी थी और मेरी तरह ही बारिश में भीग रही थी। मैंने अपने छाते को खोलकर उस नन्ही चिड़िया को बारिश में भीगने से बचा लिया। उसी समय मेरे द्वारा घटित घटना को देखा गया कि चिड़िया के बिखरे पंखों से मधुमखियाँ निकल रही थी, जो मेरी आँखों के द्वारा पहली बार देखी गयी विचित्र प्रदर्शित हुयी। इस घटना के प्रति मेरे दिमाग में कई सवाल उत्पन्न हो रहे थे परन्तु उन्हें सहता रहा। चिड़िया की वह गंभीर दशा जैसे की मुझे स्पर्श कर रही हो, अत्यधिक दर्दनीय व असहनीय वाली थी। उस नन्ही चिड़िया को 5-6 मधुमक्खीयों ने काट लिया और उड़ गयी। गुजरे कुछ समय बाद ही उस नन्ही चिड़िया ने अपनी सुक्ष्म व कोमल चोंच को खोल दिया, लग रहा था कि वह पानी पीना चाहती है। जब मैं पानी लेकर लौटा तो देखा कि उसकी उसकी आंखें खुली हुई रह गयी और आँखों मे पानी से छा गया। एक पल के लिए लगा कि कोई अपना ही साथी अलविदा कह गया हो। यह घटना इतने कम समय में घटित हुई कि मैं अपने मानवपन के अहसास के प्रयास को प्रकट नहीं कर सका।
अंत में केवल एक मानवता प्रयास यही कर सका कि चिड़िया को एक उचित स्थान पर पहुँचा आया। यह प्रयास सही था या नहीं ?
और मुझे यह स्पर्श हुआ कि स्वतः ही मेरी आँखों से पानी छपक रहा था।
-धर्मेंद्र सिंह इंडिया
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कवि परिचय--
मैं धर्मेंद्र सिंह इंडिया , भारत के एक छोटे से ग्राम समूची, जो अलवर (राज.) में बसा हुआ है। मैं साहित्य एवं प्रकृति प्रेमी कक्षा ग्यारहवीं विषय जीव विज्ञान का विद्यार्थी हूँ।
धन्यवाद।
मोबाइल नंबर - 8696034109
ईमेल - chouhanjeetu1999@gmail.com