आया महिला दिवस तो, लगे चहकने बोल।
एक दिवस के लिए सब, बजा रहे हैं ढोल।।
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नारी नर की खान है, सब देते सन्देश।
सिर्फ सुनाने के लिए, उनके हैं उपदेश।।
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कहने भर को है यहाँ, महिलाओं का मान।
रोज-रोज होता यहाँ, नारी का अपमान।।
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कुछ महिलाएँ हैं अभी, दुनिया से अनजान।
घर के बाहर नहीं है, उनकी कुछ पहचान।।
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परिणय के पश्चात ही, लगा लिया उपनाम।
ढोना है इस उपनाम को, अब तो उम्र तमाम।।
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युगों-युगों से नारि का, होता मर्दन-मान।
राम रम रहे जगत में, सीता है गुमनाम।।
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जागो अब तो नारियों, तुम हो दुर्गा रूप।
तुम्हें बदलना चाहिए, मौसम के अनुरूप।।
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आज समय की माँग है, दो परिवेश सुधार।
कर्तव्यों के साथ में, हों समान अधिकार।।
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शक्ति स्वरूपा हो तुम्हीं, माता का अवतार।
तुमको ही तो जगत का, करना है उद्धार।।
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गुरुवार, 9 मार्च 2017
दोहे "तुम हो दुर्गा रूप" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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:) बढ़िया दोहे ।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसादर