आयी कातिक-पूर्णिमा, चहके गंगा-घाट।
सरिताओं के रेत में, मेला लगा विराट।।
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जाड़े के आरम्भ में, आता ये त्यौहार।
बहते निर्मल-नीर में, डुबकी लेना मार।।
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गंगा तट पर आज तो, उमड़ी भारी भीड़।
उग आये तिरपाल के, यहाँ अनेकों नीड़।।
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खिचड़ी गंगा घाट पर, लोग पकाते आज।
एक भले हो सभ्यता, लेकिन अलग मिजाज।।
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गुरू पूर्णिमा पर्व पर, तन-मन करो पवित्र।
सरिताओं के घाट पर, आज नहाओ मित्र।।
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गुरु नानक का जन्मदिन, देता है सन्देश।
जीवन में धारण करो, सन्तों के उपदेश।।
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खुला हुआ सबके लिए, हर-हर का हरद्वार।
मैली मत करना कभी, गंगा जी की धार।।
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गंगा जी के नाम से, भारत की पहचान।
गंगा तीनों लोक में, करती मोक्ष प्रदान।।
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शुक्रवार, 3 नवंबर 2017
दोहे "कार्तिक पूर्णिमा-चहके गंगा-घाट" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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