देखिए मेरी भी एक गीतनुमा बन्दिश- "कुहरा पसरा आज चमन में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') -- सुख का सूरज नहीं गगन में। कुहरा पसरा आज चमन में।। -- पाला पड़ता, शीत बरसता, सर्दी में है बदन ठिठुरता, तन ढकने को वस्त्र न पूरे, निर्धनता में जीवन मरता, पर्वत पर हिमपात हो रहा, पौधे मुरझाये कानन में। कुहरा पसरा आज चमन में।। -- आपाधापी और वितण्डा, बिना गैस के चूल्हा ठण्डा, गइया-जंगल नजर न आते, पायें कहाँ से लकड़ी कण्डा, लोकतन्त्र की आजादी तो, कब से बन्धक राजभवन में। कुहरा पसरा आज चमन में।। -- जोड़-तोड़ षडयन्त्र यहाँ है? गांधीजी का मन्त्र कहाँ है? जिसके लिए शहादत दी थी. वो जनता का तन्त्र कहाँ है? कब्ज़ा है अब दानवता का, मानवता के इस आँगन में। कुहरा पसरा आज चमन में।। -- विदुरनीति का हुआ सफाया, दुरानीति ने पाँव जमाया, आदर्शों को धता बताकर, देश लूटकर सबने खाया, बरगद-पीपल सूख गये हैं, खर-पतवार उगी उपवन में। कुहरा पसरा आज चमन में।। -- |
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सोमवार, 14 दिसंबर 2020
गीत "कुहरा पसरा आज चमन में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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लोकतंत्र ही बंधक है ।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब।
नई पोस्ट-समानता
वाह
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (15-12-20) को "कुहरा पसरा आज चमन में" (चर्चा अंक 3916) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
कामिनी सिन्हा
प्रभावशाली रचना, हमेशा की तरह।
जवाब देंहटाएंविदुरनीति का हुआ सफाया,
जवाब देंहटाएंदुरानीति ने पाँव जमाया,
आदर्शों को धता बताकर,
देश लूटकर सबने खाया,
बरगद-पीपल सूख गये हैं,
खर-पतवार उगी उपवन में।
कुहरा पसरा आज चमन में।। बहुत ही सुंदर और सारगर्भित रचना..।
जवाब देंहटाएंवन्दन
लोकतन्त्र की आजादी तो,
कब से बन्धक राजभवन में।
–जनता की खुशी/मर्जी
बहुत खूब आदरणीय सर
जवाब देंहटाएंप्रणाम शास्त्री जी, एकदम सटीक रचना आज के माहौल को प्रतिबिंंबित करती हुई ...जोड़-तोड़ षडयन्त्र यहाँ है?
जवाब देंहटाएंगांधीजी का मन्त्र कहाँ है?
जिसके लिए शहादत दी थी.
वो जनता का तन्त्र कहाँ है?...बहुत खूब
सुन्दर सृजन,
जवाब देंहटाएं