-- है यहाँ जीवन कठिन, वातावरण कितना सलोना। बाँटता सुख है सभी को, मखमली जैसा बिछौना। -- पेड़-पौधें हैं सजीले, खेत हैं सीढ़ीनुमा, पर्वतों की घाटियों में, पल रही है हरितिमा, प्राणदायक बूटियों से, महकता जंगल का कोना। -- शारदा, गंगो-जमुन का, है यहीं पर स्रोत-उदगम, मन्दिरों-देवालयों की, छटा अद्भुत और अनुपम, किन्तु आकर कुछ दरिन्दे, खेल रचते हैं घिनौना। -- चोटियों पर बर्फ की चादर यहाँ किसने बिछायी, घाटियों में नीर की गागर, छनक-छन-छनछनायी, देख कुदरत का करिश्मा, हो गया इन्सान बौना। -- इन पहाड़ों की सतह में, बस रहे कुछ प्राण भी हैं कंकड़ों और पत्थरों में रम रहे भगवान भी हैं, नाम है पत्थर मगर, पाषाण हैं अनमोल सोना। बाँटता सुख है सभी को, मखमली जैसा बिछौना।। -- |
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रविवार, 20 दिसंबर 2020
गीत "वातावरण कितना सलोना" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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नाम है पत्थर मगर,
जवाब देंहटाएंपाषाण हैं अनमोल सोना।
बाँटता सुख है सभी को,
मखमली जैसा बिछौना
–वन्दन
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 21 दिसंबर 2020 को 'जवान तैनात हैं देश की सरहदों पर' (चर्चा अंक- 3922) पर भी होगी।--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
शारदा, गंगो-जमुन का,
जवाब देंहटाएंहै यहीं पर स्रोत-उदगम,
मन्दिरों-देवालयों की,
छटा अद्भुत और अनुपम,
किन्तु आकर कुछ दरिन्दे,
खेल रचते हैं घिनौना।..बहुत सही कहा आपने शास्त्री जी.. जीवन से ओतप्रोत लयबद्ध कविता ...
प्रणाम शास्त्री जी, आपके द्वारा रचित दोहे आज भी कविता के ''इस रूप'' में जीवित होने का प्रमाण हैं...बचपन याद आ जाता है जब '' उठो लाल अब आंखें खोलो'' खूब रटा था ...
जवाब देंहटाएंखूबसूरत काव्य चित्रण।
जवाब देंहटाएंशारदा, गंगो-जमुन का,
जवाब देंहटाएंहै यहीं पर स्रोत-उदगम,
मन्दिरों-देवालयों की,
छटा अद्भुत और अनुपम,
किन्तु आकर कुछ दरिन्दे,
खेल रचते हैं घिनौना।
बहुत सही... पर्यावरण को नुक्सान पहुंचाने वाले इस धरती के दुश्मन ही हैं। They are Enemy of Our Mother Planet Earth.
बहुत अच्छे गीत हेतु साधुवाद 🙏🌹🙏
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
चोटियों पर बर्फ की चादर
जवाब देंहटाएंयहाँ किसने बिछायी,
घाटियों में नीर की गागर,
छनक-छन-छनछनायी,
देख कुदरत का करिश्मा,
हो गया इन्सान बौना...
अनुपम प्रकृति वर्णन...
सादर नमन 🙏🌷🙏
सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सराहनीय
जवाब देंहटाएंहै यहां जीवन कठिन, वातावरण कितना सलौना, बहुत सुंदर प्रकृति चित्रण
जवाब देंहटाएं