अब प्रणय दिवस में देर नहीं। कुहरा छँटने ही वाला है, फिर होगा अन्धेर नहीं।। -- धूप गुनगुनी पाकर, मादक नशा बहुत चढ़ जायेगा, सूरज यौवन पर आयेगा, तापमान बढ़ जायेगा, तूफानों में चलते रहते, रुकते कभी दिलेर नहीं। कुहरा छँटने ही वाला है, फिर होगा अन्धेर नहीं।। -- धन से सब कुछ मिल जायेगा, लेकिन मिलता प्यार नहीं, इससे बढ़ कर दुनिया में, होता कोई उपहार नहीं, नादिरशाही से कोई भी, खिलता पीत कनेर नहीं। कुहरा छँटने ही वाला है, फिर होगा अन्धेर नहीं।। -- जो दिल से उपजे वो ही तो, ग़ज़ल कही जाती है, नेह भरा पानी पी कर, ही तो बहार आती है, काँटे उगते हैं बबूल में, खट्टे-मीठे बेर नहीं। कुहरा छँटने ही वाला है, फिर होगा अन्धेर नहीं।। -- बन्दर को अदरख खाने में, स्वाद नहीं आ पाता है, किन्तु करेले को मानव, खुश हो करके खा जाता है, आँखोंवालों के हिस्से में, आती कभी बटेर नहीं। कुहरा छँटने ही वाला है, फिर होगा अन्धेर नहीं।। -- |
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शुक्रवार, 29 जनवरी 2021
गीत "कुहरा छँटने ही वाला है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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आपकी सकारात्मक संदेशों से परिपूर्ण रचनाओं से हमेशा प्रेरणा मिलती है. सादर नमन आदरणीय शास्त्री जी..
जवाब देंहटाएंकुछ के हिस्से का कुहरा कभी नहीं छँट पाता है, अंधेरों की उन्हें आदद ही हो जाती हैं
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(३०-०१-२०२१) को 'कुहरा छँटने ही वाला है'(चर्चा अंक-३९६२) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
धन से सब कुछ मिल जायेगा,
जवाब देंहटाएंलेकिन मिलता प्यार नहीं,
बहुत सुंदर।
जो दिल से उपजे वो ही तो,
जवाब देंहटाएंग़ज़ल कही जाती है,
नेह भरा पानी पी कर,
ही तो बहार आती है,
काँटे उगते हैं बबूल में,
खट्टे-मीठे बेर नहीं।
बहुत ख़ूब....
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय
जवाब देंहटाएंसार्थक संदेश देती सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंसुंदर आशावादी दृष्टिकोण।
सादर।
मंत्रमुग्ध करती रचना।
जवाब देंहटाएं