घर-आँगन-कानन में जाकर, केवल तुकबन्दी करता हूँ। अनुभावों का अनुगायक हूँ, मैं कवि लिखने से डरता हूँ।। है नहीं मापनी का गुनिया, अब तो अतुकान्त लिखे दुनिया। असमंजस में हैं सब बालक, क्या याद करे इनको मुनिया। मैं बन करके पागल कोकिल, कोरे पन्नों को भरता हूँ। मैं कवि लिखने से डरता हूँ।। आयुक्त फिरें मारे-मारे, उन्मुक्त हुए बन्धन सारे। जीवन उपवन के शब्दों में, अब तुप्त हो गये बंजारे। पतझर की मारी बगिया में, मैं सुमन सुगन्धित झरता हूँ। मैं कवि लिखने से डरता हूँ।। दे पन्त-निराला की मिसाल, चौकीदारी करते विडाल। निर्मल कैसे अब नीर रहे, कचरा गंगा में रहे डाल। मिलते हैं मोती बगुलों को, मैं घास-पात को चरता हूँ। मैं कवि लिखने से डरता हूँ।। |
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शनिवार, 27 नवंबर 2021
गीत "मैं घास-पात को चरता हूँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार
(28-11-21) को वृद्धावस्था" ( चर्चा अंक 4262) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
--
कामिनी सिन्हा
है नहीं मापनी का गुनिया,
जवाब देंहटाएंअब तो अतुकान्त लिखे दुनिया।
असमंजस में हैं सब बालक,
क्या याद करे इनको मुनिया।
मैं बन करके पागल कोकिल,
कोरे पन्नों को भरता हूँ।
मैं कवि लिखने से डरता हूँ।।.. सटीक अभिव्यक्ति । आपके भावों से सहमत ।
बहुत ही उम्दा रचना..।
जवाब देंहटाएंसादर वन्दन
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
उम्दा रचना
जवाब देंहटाएंपन्त और निराला कौन?
जवाब देंहटाएंकिसी फ़िल्म में इनके लिखे गाने तो नहीं सुने !
है नहीं मापनी का गुनिया,
जवाब देंहटाएंअब तो अतुकान्त लिखे दुनिया।
असमंजस में हैं सब बालक,
क्या याद करे इनको मुनिया।
मैं बन करके पागल कोकिल,
कोरे पन्नों को भरता हूँ।
मैं कवि लिखने से डरता हूँ।।
वाह!!!
कमाल का सृजन।
लाजवाब।
है नहीं मापनी का गुनिया,
जवाब देंहटाएंअब तो अतुकान्त लिखे दुनिया।
असमंजस में हैं सब बालक,
क्या याद करे इनको मुनिया।
मैं बन करके पागल कोकिल,
कोरे पन्नों को भरता हूँ।
मैं कवि लिखने से डरता हूँ।।
सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय ।