जीवन जीने की आशा है। जीवन जग की संभाषा है, मत समझो खेल तमाशा है।। जिसने जग में जीवन पाया, आया अदभुत् सा गान लिए। मुस्कान लिए अरमान लिए, जग में जीने की शान लिए। जब उससे हमने यह पूछा- बतलाओ तो जीवन क्या है? बोला दुनिया परिभाषा है, सारा जीवन एक भाषा है। जीवन इक खेल तमाशा है, जीवन जीने की आशा है।। -- अपने पथ पर बढ़ते-बढ़ते, जग की पोथी पढ़ते-पढ़ते। इक नीड़ बसाया जब उसने, संसार सजाया जब उसने। जब उससे हमने यह पूछा- बतलाओ तो जीवन क्या है? वह बोला जीवन आशा है, जीवन तो मधुर सुधा सा है। जीवन इक खेल तमाशा है, जीवन जीने की आशा है।। -- कुछ श्वेत-श्याम केशों वाले, अनुभव के परिवेशों वाले। अलमस्त पौढ़ और मतवाले, जीवन बगिया के रखवाले। बूढ़े बरगद से जब पूछा- बतलाओ तो जीवन क्या है? बोला जीवन अभिलाषा है, जीवन तो एक पिपासा है। जीवन इक खेल तमाशा है, जीवन जीने की आशा है।। -- जब आनन दन्त-विहीन हुआ, तन सूख गया,
बल क्षीण हुआ। जब पीत बन गयी हरियाली, मुरझाई जब डाली-डाली। अब मैंने उससे यह पूछा- अब बतलाओ जीवन क्या है? तब उसने अपना मुँह खोला, बस धीमे से ही यह बोला। जीवन तो एक निराशा है, जीवन तो बहुत जरा सा है। जीवन इक खेल तमाशा है, जीवन जीने की आशा है।। -- |
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शुक्रवार, 20 मई 2022
गीत "बतलाओ तो जीवन क्या है" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२१-०५-२०२२ ) को
'मेंहदी की बाड़'(चर्चा अंक-४४३७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
वाह वाह! क्या बात है आदरणीय, उत्तम अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंवाह!आदरणीय सर ,बहुत खूब!जीवन जीने की आशा है।
जवाब देंहटाएंजीवन की सुन्दर व विस्तृत परिभाषा
जवाब देंहटाएं