वाक्शक्ति हमको मिली, ईश्वर से अनमोल। सोच समझकर बात को, तोल-तोलकर बोल।। कुछ लोगों के तंज की, करना मत परवाह। आगे बढ़ते जाइए, मिल जायेगी राह।। चिकनी-चुपड़ी बात से, होता जग अनुकूल। खरी-खरी जो बोलता, उसके सब प्रतिकूल।। खाली पड़ी जमीन पर, बने हुए हैं कक्ष। दिखलाई देते नहीं, अब आँगन में वृक्ष।। हरा-भरा परिवेश ही, है सच्चा उपहार। पेड़ लगा कर भूमि का, करो आज शृंगार।। दिखा नहीं है जेठ में, बदन जलाता घाम। उमड़-घुमड़कर आ रहे, गरमी में घनश्याम।। करें चाकरी देश में, सुभट महाविद्वान। धनवानों की माँद में, बन्धक हैं गुणवान।। परिवर्तन है ज़िन्दगी, आयेंगे बदलाव। अनुभव के पश्चात ही, आता है ठहराव।। चाँद चमकती है तभी, जब यौवन ढल जाय। पीले पत्तों में नहीं, हरियाली आ पाय।। कभी जुदाई है यहाँ, कभी यहाँ पर मेल। हैं संयोग-वियोग का, प्यार अनोखा खेल।। दोहों में मेरे नहीं, होता है लालित्य। जो समाज को दे दिशा, वो ही है साहित्य।। |
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सोमवार, 13 जून 2022
दोहे "गरमी में घनश्याम" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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बहुत सुंदर, वाह वाह!
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