तपती गर्म दुपहरी में, जो राहत सी दे जाते हैं। पीताम्बर को धारण कर, जीवन दर्शन सिखलाते हैं।। जब सूरज आग उगलता है, लू ने जब तन को झुलसाया। सड़क किनारे खड़े तपस्वी, देते फूलों की छाया। अमलतास के पीले झूमर, मन को बहुत लुभाते हैं। पीताम्बर को धारण कर, जीवन दर्शन सिखलाते हैं।। किसके लिए बताओ तुमने सज-धज कर सिंगार किया। तुमको कंचन के गजरों का, किसने ये उपहार दिया। जनसेवा के अनुभाव तुम्हारे, मन में कैसे आते हैं? पीताम्बर को धारण कर, जीवन दर्शन सिखलाते हैं।। रामायण के नायक जैसे, कर्तव्यों के स्वामी हो। स्वार्थपरायण जग में तुम, निस्वार्थ और निष्कामी हो। आगत का स्वागत करने में, फूले नहीं समाते हैं। पीताम्बर को धारण कर, जीवन दर्शन सिखलाते हैं।। |
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शुक्रवार, 17 जून 2022
गीत "अमलतास के पीले झूमर बहुत लुभाते हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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अमलतास के पीले झूमर,
जवाब देंहटाएंमन को बहुत लुभाते हैं।
सच गर्मियों में इनकी बहार देखते ही बनती है
बहुत सुन्दर
वाह! अमलतास पर सराहनीय सृजन सर।
जवाब देंहटाएंसादर
वाह वाह वाह!बहुत ख़ूब आदरणीय
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना ,धन्यवाद
जवाब देंहटाएंमनभावन मंजुल।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
अमलतास की बात ही निराली है, आपने उसकी महिमा का बखूबी वर्णन किया है
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