-- मकर राशि में आ गये, अब सूरज भगवान। नदिया में स्नान कर, करना रवि का ध्यान।१। -- उत्तरायणी पर्व को, ले आया नववर्ष। तन-मन में सबके भरा, कितना नूतन हर्ष।२। -- भारत में इस पर्व के, अलग-अलग हैं नाम। “रूप” धूप का एक है, सुन्दर-सुखद-ललाम।३। -- चारों ओर भरा हुआ, लोगों में उल्लास। सुधरेगा परिवेश अब, सबको यह विश्वास।४। -- दिन-प्रतिदिन घट जायेगी, अब सर्दी की मार। उपवन में आ जायेगा, नैसर्गिक सिंगार।५। -- सरसों फूली खेत में, गेहूँ करते नृत्य। अपने रीति-रिवाज से, हम सब करते कृत्य।६। -- कलाबाजियाँ कर रहीं, उड़तीं हुई पतंग। बिखराती आकाश में, भाँति-भाँति के रंग।७। -- वसुन्धरा सजने लगी, कर सोलह सिंगार। भारतमाता को करो, सच्चा-सच्चा प्यार।८। -- तन को भी निर्मल करो, मन के हरो विकार। गंगासागर दे रहा, पूजा का अधिकार।९। -- अब भँवरे करने लगे, उपवन में गुंजार। कलियों में होने लगा, यौवन का संचार।१०। -- पीताम्बर को ओढ़कर, आये सन्त-महन्त। बासन्ती परिवेश में, सजने लगा बसन्त।११। -- शंकर जी भी चल दिये, मैदानों की ओर। निर्मल हो मन्दाकिनी, कल-कल करती शोर।१२। -- माता-पिता बुजुर्ग का, हरदम करना मान। ज्ञानसिन्धु आचार्य का, करना मत अपमान।१३। -- नहीं बड़ा है देश से, भाषा-धर्म-प्रदेश। भेद-भाव की भावना, पैदा करती क्लेश।१४। -- |
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शनिवार, 14 जनवरी 2023
दोहे "उपवन में गुंजार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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