समीक्षा "समय का व्यास" --
अपने पिछत्तर साल के जीवन में मैंने यह देखा है कि गद्य-पद्य में
रचनाधर्मी बहुत लम्बे समय से सृजन कर रहे हैं। लेकिन ऐसे बहुत कम साहित्यधर्मी हैं जो तुकान्त के
साथ-साथ अतुकान्त अर्थात् अकविता रचना में आज भी संलग्न हैं। "समय का व्यास"
मेरे विचार से ऐसा ही एक प्रयोग है। जिसमें समाज के विभिन्न रूपों को काव्य की
विशेषताओं का संग-साथ लेकर गीतकार डॉ. मोहन सिंह कुशवाहा ने अपने संकलन में
पिरोया है।
यद्यपि प्रत्येक व्यक्ति के भीतर एक रचनाकार छिपा होता है, जो अपनी रुचियों
के अनुसार गद्य-पद्य की रचना करता है। किन्तु आज के छन्दहीन रचनाओं के परिवेश
में छन्दबद्ध काव्य और अकविता की रचना करना स्वयं में सराहनीय कार्य है। काव्य रचना करने वाले लोग कवियों और विधा
विशेष में छन्दबद्ध लिखने वालों की गिनती विशिष्ट कवियों की श्रेणी में आते हैं।
ऐसे लोग अक्सर उपदेशक या गीतकार ही होते हैं। जो अपने गृहस्थ जीवन का निर्वहन
करते हुए यह विलक्षण कार्य कर रहे हैं।
मुझे परसों ही आपकी कृति प्राप्त हुई और प्राथमिकता के आधार पर कुछ शब्द लिखने का मन बना लिया। यद्यपि भूमिका और समीक्षा के लिए मेरी बुकसैल्फ में कई पुस्तकें कतार में थीं। परन्तु अपने निजी कार्यों और दैनिक उलझनों के कारण समय का भी अभाव रहता है। किन्तु गीतकार डॉ. मोहन सिंह कुशवाहा जी के सम्मानार्थ "समय का व्यास" के बारे में समीक्षास्वरूप कुछ शब्द लिखने के लिए मेरी अंगुलियाँ कम्प्यूटर के की बोर्ड पर चलनें लगी।
कानपुर (उत्तर-प्रदेश) निवासी डॉ. मोहन सिंह कुशवाहा जी की बहुत सारी
तुकान्त और लयबद्ध रचनाएँ मैंने सामाजिक साइट फेसबुक पढ़ी थीं। लेकिन अतुकान्त
रचनाओं की यह कृति देखकर मुझे सुखद आश्चर्य हुआ। नाम के अनुरूप मुझे पहले तो लगा कि यह कृति भी उनके गीतों का ही संकलन होगा। परन्तु रचनाएँ बाँचने पर ज्ञात हुआ कि इसमें तो गद्य-गीत हैं। कवि ने अपने आसपास बिखरे उपादानों को अपने काव्य का माध्यम बनाया है। सदीनामा प्रकाशन, कोलकाता द्वारा प्रकाशित एक सौ चार पृष्ठों की पेपरबैक
पुस्तिका में-सहचरी, यादें, स्त्री, बदलाव, बून्दे, बौद्धिक-कचरा, जंगल होती
बस्ती, अपथ्यामर्ष, बिछुड़न, अस्तित्व खोने का सुख, विपन्नता, तितली, गोबर्धन और
चिड़िया, उन्मूलन, कौन है, खोज, शब्द बीज, मैं कौन हूँ, धरती, फसल, कहाँ हो मेरे
गाँव, मृग-तृष्णा, तलाश, प्रलय के बाद, यौवन, बूढ़ा बरगद, वृक्ष और मानव, किसान,
अतीत, बेटा, लकीर, अदृश्य, नदी की आत्म हत्या, विकलांग खुशी, दो बूँदों का
रहस्य, कोई बुलाता है, तृष्णा, गांधी, देशद्रोह बनाम देश प्रेम, गौरैया, पलायन,
युद्धरत, बस्ती और चील, हारेगा तनाव, भूख, मजदूर, तीन चित्र, घर वापसी, वर्तमान
के सूरज, पलायन, चार चित्र, बंधुआ और जिजिविषा की हार। शीर्षक से इक्यावन
अकविताएँ हैं। उदाहरण स्वरूप यहाँ मैं कवि मोहन सिंह
कुशवाहा के काव्य सौष्ठव को उद्धृत कर रहा हूँ-
संकलन की सबसे बड़ी विशेषता है कि इसमें माँ शारदे की वन्दना नहीं है। शायद इसके मूल में कवि की यह
भावना रही कि प्रत्येक शब्द माँ वीणापाणि का स्तवन होता है। संकलन की पहली रचना "सहचरी" में कवि ने बहुत मार्मिक
शब्द उकेरे हैं- "तुमने हमें त्याग दिया किन्तु हमने हर वक्त तुम्हारा साथ दिया कितने अकेले हो गये हो तुम" "स्त्री" शीर्षक से कवि लिखता है- "जो हारी नहीं हारती नहीं संसार को सुख और शान्ति दे रही है आराम दे रही है"
संकलन की एक और रचना "कौन है" में कवि की अभिव्यक्ति कुछ इस प्रकार है- "सुरीली कोयल की तान को नशीला कर जाता है कौन है? कौन है वह रस मर्मज्ञ" यौवन पर आधारित यह रचना भी सुन्दर बन
पड़ी है- "सपने और यथार्थ के बीच एक अँधेरी खाई है जिसमें असंख्य सपने अपना अस्तित्व खोज रहे हैं अतीत होते यौवन का"
संकलन की अधिकांश अकविताएँ ऐसी हैं जो सीधे
दिल में उतर जाती हैं। "बेटा" शीर्षक से कवि के भाव कुछ इस प्रकार हैं- "मर्यादा की रेखा के इस पार खड़ा जीवन मूल्यों की रक्षा के लिए स्थिर जल के नीचे धाराओं के तूफान छिपाये सदा सदा के लिए एक अनुत्तरित प्रश्न बन जाता है बेटा"
भूख के दर्शन को दर्शाती कवि की एक और रचना भी देखिए- "मत सिखाओ अनुशासन इन भूखे श्रमजीवियों को भूख ने इनका विवेक इनका घैर्य इनका धर्म सब कुछ छीन लिया है" वैसे तो इस संकलन की सभी रचनाएँ एक से बढ़कर एक हैं किन्तु "बूढ़ा बरगद" शीर्षक से यह रचना भी अनुपम है- "आज बहुत उदास है बू़ढ़ा बरगद अपनी लम्बी-लम्बी भुजाओं पर झूला झुलाते अपनी सन्तानों की किलकरारियाँ सुन"
इस संकलन की एक और सशक्त रचना "वर्तमान के सूरज" भी बहुत प्रभावित करती है- "सुनों भ्रम मत पालो तुम भगवान नहीं हो दो बार बहुमत का आँकड़ा क्या पा गये तुम तो जमीन छोड़ हवा में उड़ने लगे" कवि डॉ. मोहन सिंह कुशवाहा ने अपनी
कृति “समय का व्यास” में मानवीय संवेदनाओं के साथ-साथ सामाजिक और प्राकृतिक उपादानों को भी अपनी रचनाओं का विषय बनाया है।
मुझे पूरा विश्वास है कि कवि की
अनमोल रचनाओं से सुसज्जित कृति “समय का व्यास” को पढ़कर सभी वर्गों के पाठक लाभान्वित होंगे तथा समीक्षकों की दृष्टि
से भी यह कृति उपादेय सिद्ध होगी। इस अनमोल संग्रह के लिए मैं कवि को बधाई देता
हूँ
हार्दिक शुभकामनाओं के
साथ। दिनांक- 28 अप्रैल, 2024 (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’) कवि एवं समीक्षक टनकपुर-रोड, खटीमा जिला-ऊधमसिंहनगर (उत्तराखण्ड) 262 308 E-Mail . roopchandrashastri@gmail.com Website.
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रविवार, 28 अप्रैल 2024
समीक्षा "समय का व्यास-डॉ. मोहन सिंह कुशवाहा" (समीक्षक-डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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