"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2009
हिन्दी-स्वरावलि (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
‘‘अ‘’ से अल्पज्ञ सब, ओम् सर्वज्ञ है।
ओम् का जाप, सबसे बड़ा यज्ञ है।।
‘‘आ’’
‘‘आ’’ से आदि न जिसका, कोई अन्त है।
सारी दुनिया का आराध्य, वह सन्त है।।
‘‘इ’’
‘‘इ’’ से इमली खटाई भरी, खान है।
खट्टा होना खतरनाक, पहचान है।।
‘‘ई’’
‘‘ई’’ से ईश्वर का जिसको, सदा ध्यान है।
सबसे अच्छा वही, नेक इन्सान है।।
‘‘उ’’
उल्लू बन कर निशाचर, कहाना नही।
अपना उपनाम भी यह धराना नही।।
‘‘ऊ’’
ऊँट का ऊँट बन, पग बढ़ाना नही।
ऊँट को पर्वतों पर, चढ़ाना नही।।
‘‘ऋ’’
‘‘ऋ’’ से हैं वह ऋषि, जो सुधारे जगत।
अन्यथा जान लो, उसको ढोंगी भगत।।
‘‘ए’’
‘‘ए’’ से है एकता में, भला देश का।
एकता मन्त्र है, शान्त परिवेश का।।
‘‘ऐ’’
‘‘ऐ’’ से तुम ऐठना मत, किसी से कभी।
हिन्द के वासियों, मिल के रहना सभी।।
‘‘ओ’’
‘‘ओ’’ से बुझती नही, प्यास है ओस से।
सारे धन शून्य है, एक सन्तोष से।।
‘‘औ’’
‘‘औ’’ से औरों को पथ, उन्नति का दिखा।
हो सके तो मनुजता, जगत को सिखा।।
‘‘अं’’
‘‘अं’’ से अन्याय सहना, महा पाप है।
राम का नाम जपना, बड़ा जाप है।।
‘‘अः’’
‘‘अः’’ के आगे का स्वर,अब बचा ही नही।
इसलिए, आगे कुछ भी रचा ही नही।।
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि ...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
वाह ! वाह ! वाह ! अद्भुत !
जवाब देंहटाएंस्वरों से रचित प्रस्तुति अद्वितीय है.यहाँ तो भाव भी है और शब्द चमत्कार भी.....सुंदर कविता !
मयंक जी!
जवाब देंहटाएंआपने स्वरों पर बहुत सुन्दर लिखा है । यह मात्र स्वरांजलि ही नही है अपितु सभी के लिए शिक्षा-प्रद भी है।