"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
बुधवार, 18 फ़रवरी 2009
मुझे लेना नही आया। उन्हे देना नही भाया।। (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक)
हमेशा गुन-गुनाता था।
हृदय का शब्द होठों पर,
कभी बिल्कुल न आता था।
मुझे कहना नही आया।
उन्हें सुनना नही भाया।।
कभी जो भूलना चाहा,
जुबां पर उनकी ही रट थी।
अन्धेरी राह में उनकी,
चहल कदमी की आहट थी।
मुझे सपना नही आया।
उन्हें अपना नही भाया।।
बहुत से पत्र लाया था,
मगर मजमून कोरे थे।
शमा के भाग्य में आये,
फकत झोंकें-झकोरे थे।
मुझे लिखना नही आया।
उन्हें पढ़ना नही आया।।
बने हैं प्रीत के क्रेता,
जमाने भर के सौदागर।
मुहब्बत है नही सौदा,
सितम कैसे करूँ उन पर।
मुझे लेना नही आया।
उन्हे देना नही भाया।।
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि &qu...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
बहुत सुंदर लिखा....
जवाब देंहटाएंमिलन के गीत मन ही मन,
जवाब देंहटाएंहमेशा गुन-गुनाता था।
हृदय का शब्द होठों पर,
कभी बिल्कुल न आता था।
yah sher hamen bahut pasand aaya , maine apni dairy men bhi likh li hai
बेहतरीन रचना...
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी लाजवाब!
जवाब देंहटाएं---
गुलाबी कोंपलें
चाँद, बादल और शाम
मुझे लिखना नही आया।
जवाब देंहटाएंउन्हें पढ़ना नही आया।।
अपनी तरह की अनूठी रचना..
सादर..
वन्दन
जवाब देंहटाएंअद्धभुत लेखन
मुझे कहना नही आया।
जवाब देंहटाएंउन्हें सुनना नही भाया।।
बहुत खूब 👏👏
बहुत अच्छा लगा आपको फिर से सक्रिय देख। आशा है पूर्णतया स्वस्थ होंगे।
जवाब देंहटाएंसंगीता दी के परिश्रम स्वरूप आपकी पुरानी रचना को पढ़ने का सौभाग्य मिला,सादर नमन सर
जवाब देंहटाएंबहुत से पत्र लाया था,
जवाब देंहटाएंमगर मजमून कोरे थे।
शमा के भाग्य में आये,
फकत झोंकें-झकोरे थे।
मुझे लिखना नही आया।
उन्हें पढ़ना नही आया।।---वाह सर बहुत ही खूबसूरत पंक्तियां हैं।
आज आदरणीया संगीता दी की वजह से ये खूबसूरत रचना हम तक पहुँच सकी। बहुत बहुत सुंदर कविता। सादर।
जवाब देंहटाएंबने हैं प्रीत के क्रेता,
जवाब देंहटाएंजमाने भर के सौदागर।
मुहब्बत है नही सौदा,
सितम कैसे करूँ उन पर।
मुझे लेना नही आया।
उन्हे देना नही भाया।।
आदरणीय सर बहुत बढ़िया भावपूर्ण सृजन| आपकी लेखनी का ये रंग बहुत अच्छा लगा | आपके ऊतम स्वास्थ्य की कामना करती हूँ | आशा है जल्द ही आप ब्लॉग पर लौटेंगे | प्रणाम और शुभकामनाएं|
मुझे लेना नही आया।
जवाब देंहटाएंउन्हे देना नही भाया।।
वाह!!!!
सचमुच आ.शास्त्री जी के इस अनूठे एवं उत्कृष्ट सृजन को पढवाने के लिए आ.संगीता जी का बहुत बहुत आभार....।
आ.शास्त्री जी आप शीघ्र स्वस्थ हों यही प्रार्थना है भगवान से।