लक्ष्य छोटा हो, या हो बड़ा ही जटिल,
दो कदम तुम चलो, दो कदम वो चले,
ख्वाब जन्नत के, नाहक सजाता है क्यों,
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ख्वाब जन्नत के, नाहक सजाता है क्यों,
जवाब देंहटाएंढोल मनमाने , नाहक बजाता है क्यों ,
चाह मिलती हैं, मर जाने के बाद ही-
बन्दगी पास खुद, चलके आती नही।।
शाश्त्री जी बहुत लाजवाब बात कही आपने. बहुत धन्यवाद.
रामराम.
बेहतरीन रचना...जिंदगी के अलग अलग रंग बिखेरती हुई...
जवाब देंहटाएंनीरज
मयंक जी बहुत अच्छा लिखा है, दिल में जगह बन गयी!!
जवाब देंहटाएं---
चाँद, बादल और शाम
बढ़िया गीत के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंश्रेष्ठ गीत, अच्छे भाव। मुबारकवाद।
जवाब देंहटाएंलीक से हट कर नया प्रयोग गीत में किया है। बधाई।
जवाब देंहटाएंचलना ही जिन्दगी है,
जवाब देंहटाएंतभी मंजिल मिलेगी।
कविता के माध्यम से अच्छा सन्देश।
शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंआपकी कलम से निकला यह गीत भी बढ़िया है।
गीत में शब्दों का अच्छा समायोजन है।
शुभकामनाएँ।
सशक्त लेखनी,
जवाब देंहटाएंबधाई।
बहुत सार्थक सन्देश देती रचना ..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा सन्देश दिया है सर!
जवाब देंहटाएंसादर
ख्वाब जन्नत के, नाहक सजाता है क्यों,
जवाब देंहटाएंढोल मनमाने , नाहक बजाता है क्यों ,
चाह मिलती हैं, मर जाने के बाद ही-
बन्दगी पास खुद, चलके आती नही।।
लाख टके की एक बात ....
जीते जी ही सम्मान मिल जाये बहुत बड़ी बात है ...!!
कर्म का सन्देश देती परिपक्व कविता.
जवाब देंहटाएंbehtreen rachna....
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