“य” से यति वो ही कहलाते! जो नित यज्ञ-हवन करवाते! वातावरण शुद्ध हो जाता, कष्ट-क्लेश इससे मिट जाते! “र” |
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बुधवार, 9 जून 2010
“व्यञ्जनावली-अन्तस्थ” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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क्या बात है , चित्र बहुत प्यारे सजाये है ,इस स्वर लहरी में शास्त्री जी !
जवाब देंहटाएं"क" कहता है काम करो,
जवाब देंहटाएंतब "ख" कहता है, खाओ.
"ग" कहता है गलत न बोलो,
"घ" कहता, घर जाओ।
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बहुत सुन्दर तरीके से अन्तस्थों के बारे में बतलाया, आपने। धन्यवाद.
dhanya ho aap
जवाब देंहटाएंएक बार फिर बेहतर।
जवाब देंहटाएंbahut badhiya...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना....और चित्र भी बिलकुल सार्थक
जवाब देंहटाएंaaj main sweekaar karta hoon sareaam ki aap ka koi jawaab nahin hai shrimaan !
जवाब देंहटाएंpasand **************
हर बार, बार बार आपको नमन !
जवाब देंहटाएंचित्र और रचना दोनों ही अपने उद्देश्य की पूर्ति कर रहे हैं ....
जवाब देंहटाएंआभार ...!!
एक बार फिर आपके लेखन को नमन्…………अति सुन्दर्।
जवाब देंहटाएंलो जी, इसी बहाने हमने ककहरा याद कर लिया। शुक्रिया।
जवाब देंहटाएं--------
ब्लॉगवाणी माहौल खराब कर रहा है?