"ट" "ट" से टहनी और टमाटर! अंग्रेजी भाषा है टर-टर! हिन्दी वैज्ञानिक भाषा है, सम्बोधन में होता आदर!! "ठ" "ठ" से ठेंगा और ठठेरा! दुनिया में ठलुओं का डेरा! ठग लोगों को बहकाता है, तोड़ डालना इसका घेरा!! "ड" "ड" से बनता डम्बिल-डण्डा! डलिया में मत रखना अण्डा! रूखी-सूखी को खाकर के, पानी पीना ठण्डा-ठण्डा!! "ढ" "ढ" से ढक्कन ढककर रखना! ढके हुए ही फल को चखना! मनमाने मत ढोल बजाना, सच्चाई को सदा परखना!! "ण" "ड" को बोलो नाक बन्दकर! मुख से "ण" का निकलेगा स्वर! झण्डे-डण्डे में आधा “ण”, सदा लगाना होता हितकर!! |
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रविवार, 6 जून 2010
“व्यञ्जनावली-टवर्ग” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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आदरणीय़ शास्त्री जी, देखियेगा आपकी यह रचनायें किसी पुस्तक में छपी मिलेंगी भविष्य में.
जवाब देंहटाएंबहुत सही!
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंआप हर रोज इतनी सुन्दर रचना बनाते हैं....अब तो प्रशंसा करना भी कम पड़ गया है....
सराहनीय....एक दिन पाठ्यक्रम में ज़रूर शामिल होंगी ये रचनाएँ...
bahut sunder kavita.
जवाब देंहटाएंbas ek jagah jo aapne THALUA word use kiya he uska meaning baccho ka na samajh aayega...aur koi asaan shabd hota to jyada bahtar tha..
bachho k dimag k level se soche to shayed apko meri baat sahi lage.
kshama chahungi is himakat k liye.
बहुत खूब युही लगे रहिये .............आभार और शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंसराहनीय....एक दिन पाठ्यक्रम में ज़रूर शामिल होंगी ये रचनाएँ...
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी आपकी हर एक रचनाएँ इतनी सुन्दर है कि आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है! बहुत बहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंइस अक्षर ज्ञान सागर में हम भी गोता लगा रहे हैं .. बहुत लाजवब शास्त्री जी ...
जवाब देंहटाएंक्या बात है………………गज़ब की प्रस्तुति……………ड और ण दोनो को कविता मे ढालना कोई आपसे सीखे।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता... बच्चों को वर्णों का ज्ञान दिलाने में आसान करती है ये कविता
जवाब देंहटाएंअद्वितीय!
जवाब देंहटाएंयह व्यंजनावाली तो बड़ी रोचक है!
जवाब देंहटाएंकमाल की सृजनता
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