रोज सुबह उठना हो गया विलम्ब मैने सोचा आज गमलों मे उगे पौधे प्यासे होंगे मेरा इन्तजार कर रहे होंगे मैं जल्दी से पानी की बाल्टी लेकर छत पर गया वहाँ मेरी छः साल की पौत्री पौधों को सींच रही थी वह बार-बार नीचे आती थी और एक मग पानी लेकर छत पर जाती थी मैंने उससे कहा बिटिया? यह तुम क्या कर रही हो? उसने भोले पन से उत्तर दिया पौधों को पानी पिला रही हूँ जो आप करते थे वही मैं कर रही हूँ अब मुझे विश्वास हो गया कि आने वाली पीढ़ी के हाथों में हमारा भविष्य सुरक्षित है काश्... हमारा देश भी ................. |
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बुधवार, 15 दिसंबर 2010
"दिनचर्या" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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पौधों को पानी पिला रही हूँ
जवाब देंहटाएंजो आप करते थे
वही मैं कर रही हूँ ...
एक कोमल अहसास ...बहुत ही सुन्दर शब्द रचना ।
आपकी पौत्री को हमारा आशीर्वाद।
जवाब देंहटाएंबच्चे सिखाने से नहीं बल्कि देखने से सीखते हैं.आपकी पौत्री ने आपसे सीखा.
जवाब देंहटाएंबहुत शुभकामनाये.
सेतुबंध के समय गिलहरी का योगदान याद आ गया! हम घर से ही कुछ संस्कार दे सकते हैं बच्चों को.. देश ने तो उम्मीदें समाप्त कर दी हैं...
जवाब देंहटाएंबहुत ही मासूम कविता पंडित जी!!
kaash... kabhi badi peeda deta hai..
जवाब देंहटाएंआशाओं को बल प्रदान करते विश्वास बड़ी शक्ति देते हैं...
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना!
बहुत सुंदर,आप की बात सही हे जी, पोत्री को हमारी तरफ़ से प्यार
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर। बच्चे तो देखकर ही सीखते हैं।
जवाब देंहटाएंkitni saralta se,sunderta se kah di itni badi baat.wah.
जवाब देंहटाएंवाह! दिल मे उतर गयी आपकी ये रचना और आपकी पोती मे आवेष्ठित आपके संस्कार ………………सच सुरक्षित है भविष्य ………………आपका कहना सही है काश देश का भी होता तो इन्ही के हाथो मे तो है कल ।
जवाब देंहटाएंकाश्...
जवाब देंहटाएंहमारा देश भी
kash such me aisa ho pata.
जिस तरह नन्हे बीज फूटते है पौधा और बीज बन नए पौधे की उत्त्पति होती है.. उसी तरह ये नन्हे बच्चे हमारे जीवन को आगे बढ़ाते है..हमारा भविष्य हैं ...बहुत सुन्दर रचना .. बिटिया को शुभकामनाये..
जवाब देंहटाएंबच्चे अपने बड़ों से ही सीखते हैं ..सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं