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बुधवार, 29 दिसंबर 2010
"कर दूँगा रौशन जग सारा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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naye saal ka swagat karti...bhut hi sundar...sabd chayan wah ji kya baat hai.....happy new year....
जवाब देंहटाएं"kaavya kalpna"
काश,ऐसा ही हो। स्वागत है।
जवाब देंहटाएंआपने मेरी भावनाओं को भी शब्द दिए।
जवाब देंहटाएंबहुत सरस रोचक और शिक्षाप्रद कविता।
जवाब देंहटाएंआशा है ९ तारीख को आपके गले से सुनने को मिलेगा।
नए साल के सूरज का स्वागत करती इस कविता के साथ ही नए साल की मंगलमयी शुभकामना भी स्वीकार करें ।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंनये वर्ष का सूर्य, भगवान करे सबको प्रकाश दे। बहुत ही सुन्दर कविता।
जवाब देंहटाएंमैं दिन का भेद बताता हूँ,
जवाब देंहटाएंऔर रातों को छिप जाता हूँ,
विश्राम करो श्रम को करके,
मैं पाठ यही सिखलाता हूँ,
बन जाऊँगा मैं सरदी में,
गुनगुनी धूप का अंगारा।
लेकर आऊँगा उजियारा।।
मैं नये साल का सूरज हूँ,
हरने आया हूँ अँधियारा।।
पूरी लयात्मकता के साथ सुन्दर गीत
मैं नये साल का सूरज हूँ,
जवाब देंहटाएंहरने आया हूँ अँधियारा।।
maine to ye geet gaa ke padha...aanand aa gaya!
अच्छी कविता। नव वर्ष की शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंसुन्दर गीत.. नए वर्ष का जोश भरा आह्वान.. नव वर्ष की हार्दिक शुभकामना...
जवाब देंहटाएंनए साल का सूरज ...चमकता रहे ...नव वर्ष की शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंमैं नये साल का सूरज हूँ,
जवाब देंहटाएंहरने आया हूँ अँधियारा।।
सुन्दर संदेश देता गीत उत्साहवर्धन करता है।नव वर्ष की शुभकामनाएं।
बहुत ओजपूर्ण प्रेरक प्रस्तुति..नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंबहुत ऊर्जावान गीत .
जवाब देंहटाएंआपको नव वर्ष की ढेरों शुभकामनाएं
shastriji,
जवाब देंहटाएंnav varsh ka sooraj aisa hi ho!
naye varsh ki shubhkamnaon ke sath..
मैं नये साल का सूरज हूँ,
जवाब देंहटाएंहरने आया हूँ अँधियारा।
मैं स्वर्णरश्मियों से अपनी,
लेकर आऊँगा उजियारा।।
चन्दा को दूँगा मैं प्रकाश,
सुमनों को दूँगा मैं सुवास,
मैं रोज गगन में चमकूँगा,
मैं सदा रहूँगा आस-पास,
मैं जीवन का संवाहक हूँ,
कर दूँगा रौशन जग सारा।
लेकर आऊँगा उजियारा।।
मैं नित्य-नियम से चलता हूँ,
प्रतिदिन उगता और ढलता हूँ,
निद्रा से तुम्हें जगाने को,
पूरब से रोज निकलता हूँ,
नित नई ऊर्जा भर दूँगा,
चमकेगा किस्मत का तारा।
लेकर आऊँगा उजियारा।।
मैं दिन का भेद बताता हूँ,
और रातों को छिप जाता हूँ,
विश्राम करो श्रम को करके,
मैं पाठ यही सिखलाता हूँ,
बन जाऊँगा मैं सरदी में,
गुनगुनी धूप का अंगारा।
लेकर आऊँगा उजियारा।।
मैं नये साल का सूरज हूँ,
हरने आया हूँ अँधियारा।।
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (17-05-2021 ) को 'मैं नित्य-नियम से चलता हूँ' (चर्चा अंक 4068) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत ही शानदार रचना आदरणीय शास्त्री जी आशा करता हूं आप स्वस्थ होंगे काफी समय से आपके दर्शन नहीं हुए आपकी पोस्ट के माध्यम से कमेंट के माध्यम से हमें प्यार हमेशा मिलता रहा है
जवाब देंहटाएंसकारात्मक गीत
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब । मैं नये साल का सूरज हूं । बेजोड़
जवाब देंहटाएंप्रणाम शास्त्री जी, आज की आपकी ये कविता ना जाने कितनों को अपने मन की शांति देगी---बहुत सुदर कि "मैं नये साल का सूरज हूँ,
जवाब देंहटाएंहरने आया हूँ अँधियारा।।"
बहुत सुंदर आशा से भरपूर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंअंतर्मन प्रभावित है सूरज की इन गुणों को जानकर। बहुत ही सहज ढंग से लिखा हुआ यह रचना। अप्रतिम।
जवाब देंहटाएं