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मंगलवार, 4 जनवरी 2011
"नही भार उठाया जाता" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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जवाब देंहटाएंमजेदार..बेहतरीन !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया.......भाव और सत्यता से ओत प्रोत
जवाब देंहटाएंआपकी रचनायें सशक्त रहती हैं।
जवाब देंहटाएंपिछड़ गया है गद्य, पद्य में मन की व्यथा कही है।
जवाब देंहटाएंजो कुछ मुझपर गुजर रही है वो ही कथा कही है।।
उत्तम प्रस्तुति !
bahut baddhiya
जवाब देंहटाएंआप बढ़िया लिखते हैं शास्त्री जी ।
जवाब देंहटाएंman ke bhavon ko sachchai ke sath prakat karna hi kavi dharm hai .is kasauti par to aapki har rachna khri utarti hai fir kisi ne kya kaha aur kya nahi -is par vichar karna gairjaroori hai .
जवाब देंहटाएं। अरे आज क्या बात कह दी…………यूँ लग रहा है कि सच्चाई कह दी…………शायद यही सच है हम सभी का।
जवाब देंहटाएंक्या बात कही है पंडित जी! ऐट लीस्ट,हमतो कतई नहीं सोचते ऐसा आपके बारे में!!आपने पनेमन की कही है और हमें अपनी सी लगी है!!
जवाब देंहटाएंजय हो!!
halke saral shabdo se buni aik sundar rachnaa.. bhari bharkam klisht shabdon kee jarurat bhi nahi hoti..... aapki rachnaaye hamesha bahut sikshaprad Saral saras hoti hain....aur aapka cartoon chitr gajab..
जवाब देंहटाएंआप ऐसा कहेंगे तो हम जैसे कहाँ जायेंगे ?:)
जवाब देंहटाएंchitran acha laga...!
जवाब देंहटाएंरोचक ...
जवाब देंहटाएंस्वाभाविकता इसी में है ..!
आपकी लेखनी सतत चलती रहे!
जवाब देंहटाएंसादर!
adarniy shastriji,
जवाब देंहटाएं'kavita bhavuk hriday ki sahajtam abhivyakti hoti hai'
iske bare me aap jaise vaniputra se adhik aur kaun jan sakta hai?
aap jo bhi likhte hain,apne aap me
satsahity ka khajana hi hota hai.
bhasha aur vidha jo bhi ho!