फिर एक बार मुलाकात अपने साथ करें तुम आसमां के हमें ख्वाब क्यों दिखाते हो ज़मी के लोग हैं हम इस ज़मी की बात करें उजाड़ जंगलों में क्या तलाशने निकले चलो नदी पे नहीं तो नदी की बात करें पिरामिडों में दफ़्न दौलतों को भूलो भी किसी के ग़म की किसी की खुशी की बात करें मुहब्बतों की बात यह जहान भूल गया ये ज़िंदगी है तो ज़िन्दादिली की बात करें कदम-कदम पे नफरतों के अन्धेरे हैं यहाँ वफ़ाशआर किसी रौशनी की बात करें ग़ज़ल का दौर है शैली कोई कलाम पढ़ो इस अंजुमन में क्यों न ताज़गी की बात कर श्रीमती आशा शैली "हिमाचली" |
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मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011
"ग़ज़ल-आशा शैली हिमाचली" (प्रस्तोता-डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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उम्दा ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंbahut sundar. asha shaili ji ko dhanywad. unhe shubh tarika me bhi khoob padhne ko milta tha.
जवाब देंहटाएंताज़गी भरी गज़ल।
जवाब देंहटाएंकदम-कदम पे नफरतों के अन्धेरे हैं यहाँ
जवाब देंहटाएंवफ़ाशआर किसी रौशनी की बात करें
बहुत खूब !! उम्दा ग़ज़ल !!
तुम आसमां के हमें ख्वाब क्यों दिखाते हो
जवाब देंहटाएंज़मी के लोग हैं हम इस ज़मी की बात करें
bahut achchi lagi.
हमेशा की तरह शानदार..
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !! उम्दा ग़ज़ल !!
जवाब देंहटाएंअति सुंदर रचना धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी ग़ज़ल है.. आशा जी को बधाई. दाद कबूल करें.
जवाब देंहटाएंतुम आसमां के हमें ख्वाब क्यों दिखाते हो
जवाब देंहटाएंज़मी के लोग हैं हम इस ज़मी की बात करें
बहुत खूब , उम्दा ग़ज़ल ......
नमस्कार शास्त्री जी,देर से आने की माफ़ी ! आशा जी की ग़ज़ल आला दर्जे की हे बधाई उनके साथ आपको भी क्योकि आप ने ही उनसे रूबरू कराया हे --धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंतुम आसमां के हमें ख्वाब क्यों दिखाते हो
जवाब देंहटाएंज़मी के लोग हैं हम इस ज़मी की बात करें
.
बहुत खूब
ज़मी के लोग हैं हम इस ज़मी की बात करें
जवाब देंहटाएंबहुत खूब.. उम्दा ग़ज़ल...
मुहब्बतों की बात यह जहान भूल गया
जवाब देंहटाएंये ज़िंदगी है तो ज़िन्दादिली की बात करें
umdaa gazal.
अति सुंदर रचना.....
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी इस प्रस्तुतिके लिये धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन गज़ल पढ़वाई..आशा जी की और रचनायें प्रस्तुत करें.
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत गज़ल ...
जवाब देंहटाएं