सीधी-सादी, भोली-भाली। लगती सुन्दर हमको काली।। भैंस हमारी बहुत निराली। खाकर करती रोज जुगाली।। इसका बच्चा बहुत सलोना। प्यारा सा है एक खिलौना।। बाबा जी इसको टहलाते। गर्मी में इसको नहलाते।। गोबर रोज उठाती अम्मा। सानी इसे खिलाती अम्मा। गोबर की हम खाद बनाते। खेतों में सोना उपजाते।। भूसा-खल और चोकर खाती। सुबह-शाम आवाज लगाती।। कहती दूध निकालो आकर। धन्य हुए हम इसको पाकर।। |
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शनिवार, 26 फ़रवरी 2011
"भैंस हमारी बहुत निराली" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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हमने तो सवारी भी की है... वाह शास्त्री साहब.. क्या खूब रचना कर दी भैंस पर..
जवाब देंहटाएंअपनी तो हाई भैंस पानी मैं. बहुत सुंदर और क्या चित्र लगाया है?
जवाब देंहटाएंआपकी बाल कवितायें संग्रहणीय हैं।
जवाब देंहटाएंजीवन कभी विस्तार न पाता,
जवाब देंहटाएंजो दूध न इसका पेट में जाता.
सुन्दर रचना...
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री जी बाल्टी की तरफ़ देखे दुध बाहर गिर रहा हे...
जवाब देंहटाएंवाह! ये अन्दाज़ भी बहुत भाया…………सुन्दर कविता बन गयी है।
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत सुन्दर बाल कविता..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बालकविता ...
जवाब देंहटाएंफिर यूँ क्यूँ कहते हैं 'भैंस के आगे बीन बजाये,सब बेकार है '
जवाब देंहटाएंया किसी की ठस बुद्धि को 'भैंस जैसी बुद्धि'
पर गाय के प्रति इसका उल्टा है .
एक बार फिर सरस और रोचक बाल गीत।
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी जितना सुन्दर सफेद खरगोश था उतनी सुन्दर काली भैंस है। सुन्दर रचना के लिये बधाई।
जवाब देंहटाएंभैंसिया पर सुंदर कविता है पर जरा भाटिया जी की बात पर ध्यान दिया जाये.:)
जवाब देंहटाएंरामराम.
दूध, दूधिया, भैंस, भैंस का बच्चा
जवाब देंहटाएंऔर कविता!
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यहाँ तो आज सब कुछ
बढ़िया ही बढ़िया दिखाई दे रहा है!
इस बेहतरीन रचना के लिए बधाई ।
जवाब देंहटाएंवाह शास्त्री जी सुंदर कविता - आप दूध भी निकालते हैं?
जवाब देंहटाएंदूध दही और घी की खान
फिर भी नहीं उचित सम्मान
इस बेहतरीन रचना के लिए आभार ।
जवाब देंहटाएंHamari Gau maata par ek vishesh arthpoorn Lekhan bakhoobi uske badapan mein ek mayoor pankh hai. Shashtri ji is or kabhi hamara dhyaan hi nahin gaya kabhi.
जवाब देंहटाएंJahan n pahunche ravi
Vahan pahunche hai kavi
sadar