है कठिन बहुत डगर, चलना देख-भालकर, धूप चिलचिला रही, बढ़े चलो-बढ़े चलो!! दलदलों में धँस न जाना, रास्ते सपाट हैं ज़लज़लों में फँस न जाना, आँधियाँ विराट हैं, रेत के समन्दरों को, कुशलता से पार कर, धूप चिलचिला रही, बढ़े चलो-बढ़े चलो!! मृगमरीचिका में, दूर-दूर तक सलिल नही, ताप है समीर में, सुलभ-सुखद अनिल नहीं, तन भरा है स्वेद से, देह चिपचिपा रही, धूप चिलचिला रही, बढ़े चलो-बढ़े चलो!! कट गया अधिक सफर, बस जरा सा शेष है, किन्तु जो बचा हुआ, वही तो कुछ विशेष है, दीप झिलमिला रहे, पाँव डगमगा रहे, धूप चिलचिला रही, बढ़े चलो-बढ़े चलो!! |
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शुक्रवार, 3 जून 2011
"गीत-...कारवाँ गुजर रहा..." (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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कट गया अधिक सफर, बस जरा सा शेष है,
जवाब देंहटाएंकिन्तु जो बचा हुआ, वही तो कुछ विशेष है,
बचे को भी अगर हम संवार लें तो जीना सार्थक हो जाये………………सुन्दर प्रस्तुति।
बहुत बढ़िया लिखा है सर!
जवाब देंहटाएंसादर
दलदलों में धँस न जाना, रास्ते सपाट हैं
जवाब देंहटाएंज़लज़लों में फँस न जाना, आँधियाँ विराट हैं,
रेत के समन्दरों को, कुशलता से पार कर,
धूप चिलचिला रही, बढ़े चलो-बढ़े चलो!!
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! ख़ूबसूरत चित्र और शानदार रचना!
दलदलों में धँस न जाना, रास्ते सपाट हैं
जवाब देंहटाएंज़लज़लों में फँस न जाना, आँधियाँ विराट हैं,
रेत के समन्दरों को, कुशलता से पार कर,
धूप चिलचिला रही, बढ़े चलो-बढ़े चलो!!
dil jeet liya ..bahut hi gaherai bhari rachana
"कट गया अधिक सफर, बस जरा सा शेष है,
जवाब देंहटाएंकिन्तु जो बचा हुआ, वही तो कुछ विशेष है,
दीप झिलमिला रहे, पाँव डगमगा रहे,
धूप चिलचिला रही, बढ़े चलो-बढ़े चलो!!"
सर जी, इस उत्साहवर्धक एवं प्रेरणादायी गीत के लिए बहुत-बहुत बधाई.इसे पढ़ने का अवसर देने के लिए आभार.आपकी अन्य रचनाओं की तरह यह भी एक सन्देशपरक रचना है.दिल को छूता हुआ गीत.
कट गया अधिक सफर, बस जरा सा शेष है,
जवाब देंहटाएंकिन्तु जो बचा हुआ, वही तो कुछ विशेष है.
सुन्दर है.
prerak geet .aabhar
जवाब देंहटाएंprernadayak prastuti
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति जी धन्यवाद
जवाब देंहटाएंदीप झिलमिला रहे .....
जवाब देंहटाएंबढे चलो बढे चलो .......
इधर धरा !उधर गगन ...
डेट रहो बढे चलो ...
आवाहन करती जोशपूर्ण जवानी ,जीवन की रवानी का, आपकी रचना!आभार ऐसे जोशपूर्ण आवाहन के लिए .
जीवन की इस मरूभूमी मे उंट बन कर ही जिया जा सकता है ।
जवाब देंहटाएंजोश से भरी कविता हमें सतत बढ़ते रहने की प्रेरणा देती है।
जवाब देंहटाएंहरिऔध जी की याद आ गई इसे पढ़कर।
देख कर वाधा विविध ....
आपका हर एक गीत स्कूल में गाये जाने के योग्य है ! मुझे नहीं चाहिए ग्लूकोन डी ! बस मुझे कोई ऐसे गीत सुनाता चले !
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी नमस्कार
जवाब देंहटाएंये कविता तो मुझ पर एकदम फ़िट बैठती है, बस जरा सा नहीं, मेरा बहुत कुछ शेष है
कट गया अधिक सफर, बस जरा सा शेष है,
जवाब देंहटाएंकिन्तु जो बचा हुआ, वही तो कुछ विशेष है,
...बहुत सच कहा है. यह बचा समय भी सार्थकता से गुजर जाये, अब तो यही महत्वपूर्ण है...बहुत सुन्दर रचना..आभार
किन्तु जो बचा हुआ, वही तो कुछ विशेष है,
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति.....
बढ़िया बढिया बढ़िया बढ़िया...
जवाब देंहटाएंक्या कहूं और कैसे कहूं......
कारवाँ गुजर रहा , रास्तों को नापकर।
जवाब देंहटाएंमंजिलें बुला रहीं, बढ़े चलो-बढ़े चलो!है कठिन बहुत डगर, चलना देख-भालकर,धूप चिलचिला रही, बढ़े चलो-बढ़े चलो!!bahut sunder bhav liye shaandaar rachanaa.badhaai sweekar karen.aabhaar.
कट गया अधिक सफर, बस जरा सा शेष है,
जवाब देंहटाएंकिन्तु जो बचा हुआ, वही तो कुछ विशेष है
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.
सुन्दर ओजपूर्ण अह्वान।
जवाब देंहटाएंकट गया अधिक सफर, बस जरा सा शेष है,
जवाब देंहटाएंकिन्तु जो बचा हुआ, वही तो कुछ विशेष है,
बहुत सुन्दर और ओजपूर्ण रचना
प्रेरक आह्वान,पंडित जी!!
जवाब देंहटाएंकट गया अधिक सफर, बस जरा सा शेष है,
जवाब देंहटाएंकिन्तु जो बचा हुआ, वही तो कुछ विशेष है,
कितनी सुंदर बात ........ प्रेरणादायी पंक्तियाँ
बेहतरीन....सुन्दर!!!
जवाब देंहटाएंbahut sundar abhivyakti....
जवाब देंहटाएंजोश दिलाती हुई आपकी वाणी की आज देश को बहुत जरूरत है ! आभार!
जवाब देंहटाएंदलदलों में धँस न जाना, रास्ते सपाट हैं
जवाब देंहटाएंज़लज़लों में फँस न जाना, आँधियाँ विराट हैं,
रेत के समन्दरों को, कुशलता से पार कर,
धूप चिलचिला रही, बढ़े चलो-बढ़े चलो!!
बहुत खूब .........हर शब्द को सार्थक करती आपकी लेखनी