सुखद बिछौना सबको प्यारा लगता है यह तो दुनिया भर से न्यारा लगता है जब पूनम का चाँद झाँकता है नभ से उपवन का कोना उजियारा लगता है सुमनों की मुस्कान भुला देती दुखड़े खिलता गुलशन बहुत दुलारा लगता है जब मन पर विपदाओं की बदली छाती तब सारा जग ही दुखियारा लगता है देश चलाने वाले हाट नहीं जाते उनको तो मझधार किनारा लगता है बातों से जनता का पेट नहीं भरता सुनने में ही प्यारा नारा लगता है दूर-दूर से “रूप” पर्वतों का भाता बाशिन्दों को कठिन गुजारा लगता है |
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शनिवार, 25 जून 2011
"ग़ज़ल" कठिन गुजारा लगता है (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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बड़ी ही सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंसही कह रहे शास्त्री जी |
जवाब देंहटाएंदुर्गमता तो पर्वतों पर
जीवन्त रहती है हमेशा |
बहुत अच्छी पंक्तियाँ --
देश चलाने वाले हाट नहीं जाते
जवाब देंहटाएंउनको तो मझधार किनारा लगता है
बातों से जनता का पेट नहीं भरता
सुनने में ही प्यारा नारा लगता है
आज तो जनता के दुख को उजागर कर दिया………बहुत संवेदनशील रचना।
बातों से जनता का पेट नहीं भरता
जवाब देंहटाएंसुनने में ही प्यारा नारा लगता है
bilkul sahee kaha.....so called policy makers seekhen isse....
सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर बातों की लड़ी सजाई आपने.
बधाई.
सुन्दर, उम्दा ग़ज़ल सर....
जवाब देंहटाएंसादर....
umdaa lekhni....bahut khub
जवाब देंहटाएंबातों से जनता का पेट नहीं भरता
जवाब देंहटाएंसुनने में ही प्यारा नारा लगता
bahut sahi kaha hai aapne .
दूर-दूर से “रूप” पर्वतों का भाता
जवाब देंहटाएंबाशिन्दों को कठिन गुजारा लगता है
bahut achcha likhe hain.
बेहद खूबसूरत रचना।
जवाब देंहटाएंपहाड़ का कठिनाई भरा जीवन आपकी नज़र के सामने है । इसीलिए आपने उसका ख़ाका ठीक ठीक खींच दिया है । जिन दिनों मैं देहरादून में पढ़ रहा था , उन दिनों और फिर कश्मीरी क़स्बों में बिताए समय में हम उस सच से रू ब रू हुए , जिनका संकेत आपने अंत में किया है ।
जवाब देंहटाएंरचना अच्छी लगी ।
बहुत सुंदर भावों से सजी रचना।
जवाब देंहटाएंजब तक टी वी का प्रभाव नहीं था...हम अपने आभावों में भी खुश थे...अब लगता है...कितनी दुश्वारियां हैं...जब सारी दुनिया को हम देख रहे हैं...पर सारी दुनिया में...एक से दर्द हैं सब एक से ही रिश्ते हैं...पहाड़ों का सरल जीवन हर किसी के नसीब में नहीं होता...
जवाब देंहटाएंबातों से जनता का पेट नहीं भरता
जवाब देंहटाएंसुनने में ही प्यारा नारा लगता है
bilkul sahi kaha
sunder gazal
देश चलाने वाले हाट नहीं जाते
जवाब देंहटाएंउनको तो मझधार किनारा लगता है
बातों से जनता का पेट नहीं भरता
सुनने में ही प्यारा नारा लगता है
बहुत सटीक बात कही है गज़ल में ..बहुत अच्छी प्रस्तुति
देश चलाने वाले हाट नहीं जाते
जवाब देंहटाएंउनको तो मझधार किनारा लगता है
bahut sunder mayank daa
संवेदनशील रचना...सादर...
जवाब देंहटाएंक्या बात है,मुकम्मल ग़ज़ल पढ़ने को मिली.
जवाब देंहटाएंजब मन पर विपदाओं की बदली छाती
जवाब देंहटाएंतब सारा जग ही दुखियारा लगता है...
सटीक कहा है आपने! सुन्दर ग़ज़ल!
saty aur sunderta ka sunder drishye dikhati sunder rachna.
जवाब देंहटाएंbahut sunder gazal likha hai aapne...........aisi panktiyaan hai jisse ki har koi sahmat ho.........vastaw me sahaj tarike se baatein kahi gyi hain inme........acha laga padh k........
जवाब देंहटाएंबैटन से नहीं भरता पेट ...ये नीतियाँ बनाने वाले और सुधारकों को समझ नहीं आता !
जवाब देंहटाएंसुन्दर विचार !